Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 57
________________ । ४०) हिन्दी-भावार्थ गौतम स्वामी बोले-भगवन् । ईषत्प्राग्भारा (सिद्धशिला) के नीचे क्या सिद्ध रहते है ? भगवान बोले-गौतम ! नही रहते है। मूल पाठ *से कहि खाइ ण भते । सिद्धा परिवसन्ति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरमाणज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढ चदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारा-भवणाओ बहूइ जायणसयाइ बहूइ जोयणसहस्साइ बहूइ जोयणसयसहस्साइ बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडोओ उड्ढतर उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणकुमार-माहिद--बभ--लत्तगमहासुक्क-सहस्सार-आणय--पाणय-आरणच्चुय तिण्णि य अट्ठारे गेविज्जविमाणावाससए वीइवइत्ता विजयवेजयत-जयन्त--अपराजिय-सव्वट्ठसिद्धस्स य महाविमाणस्स सव्व-उप-रिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालसजोयणाइ अबाहाए एत्थ ण ईसीपब्भारा णाम पुढवी पण्णत्ता पणयालीस जोयण-सय-सहस्साइ आयाम-विक्ख * अथ कुत्र भदन्त | सिद्धा परिवन्ति ? गौतम | अस्य रत्नप्रभाया पृथिव्या बहुसमरमणीयाद् भूमिभागाद् ऊर्ध्वं चन्द्रमस्-सूर्य-ग्रह-गण

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