Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti
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(४१) भेण एगा जोयणकोडी बायालीस सयसहस्साइ तीसं च सहस्साइ दोण्णी य अउणापण्णे जोयणसए किचिविसेसाहिए परिरएण, ईसिपब्भारा य ण पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइ बाहल्लेण, तयाणतर च ण मायाए-मायाए पडिहाएमाणीपडिहाएमाणी सव्वेसु चरिमपेरतेसु मच्छियपत्ताओ तणुयतरा अगुलस्स असखेज्जइभाग बाहल्लेण पण्णत्ता।
ईसीपब्भाराए ण पुढवीए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता तजहा-ईसी इ वा, इसीपब्भारा इवा, तणू इ वा, तण-तणू इ वा, सिद्धी इ वा, सिद्धालए इ वा, मुत्ति इ वा. मुत्तालए इ वा, लोयग्गे इ वा, लोयग्गभिया इ वा, लोयग्गपडिवुज्झणा इवा, सव्व-पाण-भूयजीव-सत्त-सुहावहा इ वा।
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नक्षत्र-तारा-भवनेभ्यो बहूनि योजनशतानि बहूनि यौजन-सहस्राणि, बहूनि योजन-शत-सहस्राणि, बह्वी योजनकोटी, बह्वी योजनकोटाकोटी ऊर्वतरमुत्पत्य सौधर्मेशान-सनत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्म-लान्तक-महाशुक्रसहस्रार-पानत-प्राणत-भारणाच्यतान् त्रीणि च अष्टादश अवेयकविमानावास-शतानि व्यतिव्रज्य विजय-वैजयन्त-जयन्त-अपराजितसर्वार्थसिद्धस्य च महाविमानस्य सर्वोपरितनाया स्तूपिकायाया द्वादशयोजनानि अबाधया अत्र ईषत्प्राग्भारा नाम पृथ्वी प्रज्ञप्ता, पञ्चचत्वारिंशद्योजन-शतसहस्राणि पायामविष्कभेण एका योजनकोटिः द्वि चत्वा

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