Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 53
________________ मूल पाठ * जीवा ण सिझमाणा कयरमि सठाणे सिज्झति ? गोयमा ! छण्ह सठाणाण अण्णतरे सठाण सिज्झति । हिन्दो-भावार्थ गौतम स्वामी बोले-भगवन् ! सिध्यमान (सिद्ध को प्राप्त हो रहे) जीव किस सस्थान में सिद्ध होते है ? भगवान बोले-गौतम | छह सस्थानो में से किसी भी एक सस्थान मे सिद्ध होते है। मूल पाठ + जीवण भते । सिज्झमाणा कयरम्मि उच्चत्ते सिज्झन्ति ? गोयमा ! जहण्णेण सत्तरयणीओ उक्कोसेण पञ्चधणुस्सए सिज्झन्ति । सस्कृत-व्याख्या 'जहण्णण सत्तरयणीए' त्ति सप्तहस्ते उच्चत्वे सिध्यन्ति महावीरवत्, 'उक्कोसेण पचधणुस्सए' त्ति ऋषभस्वामिवद् एतच्च द्वयमपि तीर्थंकरापेक्षयोक्तम्, अतो द्विहस्तप्रमाणेन कूर्मापुत्रेण न व्यभिचारो, न वा मरुदेव्या सातिरेकपञ्चधनु शतप्रमाणयेति । * जीवा भदन्त सिध्यन्त. कतरस्मिन् सस्थाने सिध्यन्ति ? गौतम | षण्णा सस्थानानामन्यतरस्मिन् सस्थाने सिध्यन्ति । जीवा भदन्त ! सिध्यन्तः कतरस्मिन् ऊच्चत्वे सिध्यन्ति ? गौतम जघन्येन सप्तरत्नयः, उत्कर्षेण पञ्चधनुश्शते सिध्यन्ति ।

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