Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti
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(२८) बन्धणछेयणयाए निरधणयाए पुब्बप्पआगेण अकम्मस्स गती पण्णत्ता। कहन्न भते । निस्सगयाए निरगणयाए गइपरिणामेण बधणछेयणयाए निरधणयाए, पुव्वप्पओगेण अकम्मस्स गती पण्णायति ? से जहानामए-केइ पुरिसे सुक्क तुम्ब निच्छिड्ड निस्वहय ति आणुपुब्बीए परिकम्मेमाणे २ दब्भेहि य कुसेहि य बेढेइ २ अहि मट्टियालेवेहि लिपइ २ उण्हे दलयति भूति २ सुक्क समाण अत्थाहमतारमपोरसियसि उदगसि पक्खिवेज्जा, से नूण गोयमा ! से तुबे तेसि अट्ठण्ह मट्टियालेवेण गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसभारियत्ताए सलिलतलमतिवइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवइ हता भवइ । अहेण से तुबे अट्ठण्ह मट्टियालेवेण परिक्खएण धरणितलमतिवइत्ता उप्पि सलिलतलपइट्ठाणे भवइ ?, हन्ता भवइ, कथन्नु भदन्त ! अकर्मणः गति प्रज्ञायते ? गौतम ! नि सगतया, नीरागतया, गति-परिणामेन, बन्धन-छेदनतया, निरिन्धनतया, पूर्वप्रयोगेन अकर्मण गति प्रज्ञप्ता । कथन्नु भदन्त | नि.सगतया, नीरागतया, गनिपरिणामेन, बन्धन-छेदनतया, निरिन्धनतया, पूर्वप्रयोगेन अकर्मण. गति. प्रज्ञायते ? तद्यथानाम, कोऽपि पुरुष शुष्कान् अलाबून् निछिद्रान्, निरुपहतान् इति पानुपूर्व्या परिकर्मयन् २ दर्भेश्च कुशैश्च वेष्टयति २ अष्टभि मृत्तिकालेपैः लिम्पति २ उष्णे ददाति भूयोभूय शुष्के सति प्रस्ताधे अतारे अपौरुषेये उदके प्रक्षिपेत् । तन्नून गौतम | सा आबू तेषामष्टाना मृत्ति कालेपाना गुरुतया भारितया गुरुसभारितया

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