Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 46
________________ ( २९) एव खलु गोयमा ! निस्सगयाए निरगणयाए, गइपरिणामेण अकम्मस्स गई पण्णायति । कहन्न भते । बधणछेदणयाए अकम्मस्स गई पण्णत्ता?, गोयमा ? से जदानमाए-कलसिबलियाइ वा मुग्गसिबलियाइ वा भाससिबलियाइ वा सिबलिसिबलियाइ वा ए रडमिजियाइ वा उण्हे दिन्ना सुवका समाणो फुडित्ता ण एगन्नमत गच्छइ एव खलु गोयमा । ०। कहन्न भन्ते । निरधणयाए अकम्मस्स गति पण्णत्ता ? गोयमा | से - - - सलिलतलमतिव्रज्य प्रधो धरणीतलप्रतिष्ठाना भवति ? हन्त भवति । अध सा अलाब अष्टाना मृत्तिकालेपाना परिक्षयेण धरणीतलमतिव्रज्य उपरि सलिलतलप्रतिष्ठाना भवति ? हन्त भवति । एव खलु गौतम | नि सगतया, नीरागतया गतिपरिणामेन अकर्मण गति प्रज्ञायते । कहान भदन्त | बधनछेदनसया अकर्मणो गति प्रज्ञप्ता ? गौतम ! तदयथानाम-कलायफलिका वा मुद्गफलिका वा मासफलिका वा सिंबलिफलिका वा एरण्ड फलिका वा उष्ण दत्ता शुष्का सती स्फुटित्वा एकान्तमत गच्छति । एव खलु गौतम । ० । कथन्नु भदन्त ! निरिन्धनतया प्रकर्मणो गति प्रज्ञप्ता ? गौतम । तदयथानाम-धूमस्य इन्धनविप्रमुक्तस्य कुल विस्रसया नियाघातेन गति प्रवर्तते । एव खलु गौतम ' ० । कथन्न भदन्त । पूर्व-प्रयोगेन अकर्मणो गति प्रज्ञप्ता ? गौतम | तदयथानामकाण्डस्य कोदण्डविप्रमुक्तस्य लक्ष्याभिमुखी निर्व्याघातेन गति प्रवर्तते । एव खलु गौतम ! नि सगतया नीरागतया यावत् पूर्वप्रयोगेन अकर्मणो गति: प्रज्ञप्ता।

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