Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 34
________________ (१७) मूल पाठ * णवि अत्यि मागु गाण त सोक्ख णवि य सव्वदेवाण । ज सिद्धाण सोवख अव्वाबाह उवगयाण ॥१३॥ सस्कृत-व्याख्या अथ सिद्धाना निरुपमसुखता दर्शयितुमाह-‘णवि अस्थि' गाहा व्यक्ता, नवरम् 'अव्वाबाह' ति विविधा प्राबाधा व्याबाधा तन्निषेधादव्याबाधा तामुपगताना प्राप्तानामिति । हिन्दी-भावार्थ नाना प्रकार की बाधाओ-पीडाप्रो से रहित सिद्धो को जो सुख प्राप्त है, वह सुख न सर्वदेवताओ को प्राप्त है और न सब मनुष्यो को। मूल पाठ |ज देवाण सोक्ख सव्वद्धापिण्डिय अणतगुण । ण य पावइ मुत्तिसुह णताहि वग्गवग्गूहि ॥१४॥ सस्कृत-व्याख्या कस्मादेवमित्याह-'ज देवाण' गाहा, 'यतो' यस्माद्देवानाम्अनुत्तरसुरान्ताना 'सौख्य' त्रिकालिकसुख सर्वाद्धया-प्रतीतानागतवर्त* नाप्यस्ति मानुषाणा तत्सौख्यं नापि च सर्वदेवानाम् । यत् सिद्धाना सौख्यमव्यावाधामुपगतानाम् ।। + यद्देवाना सौख्य सर्वाद्धापिण्डितमनन्तगुणम् । न च प्राप्नोति मुक्तिसुखमनन्ताभि वर्गवर्गाभि ॥

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