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सिद्ध सब प्रकार के दुखो से रहित हो चुके है । जन्म, जरा और मृत्यु के बबन से विमुक्त है। बाधारहित और शाश्वत सुख का अनुभव करते है ।
सिद्ध भगवान् उपमा रहित सुख के सागर मे निमग्न है । बाधारहित तथा उपमारहित सुख को प्राप्त करके सदा के लिए सुखी बने रहते है ।
मूल पाठ
* दत्थि ण लोए त सव्व दुपडोयारं तंजहा - जीवा चेव अजीवा देव, तसा चेव, थावरा चेव, सजोणिया चेव अजोणिया चेव, साउया चेव, अणाउया चेव, सइन्दिया चेव, अणिन्दिया चेव, सवेयगा चेव, अवेयगा चेव, सख्वी चेव, अरूवी चेव, सपोग्गला चेव अपोग्गला चेव ससार-समावन्नगा चेव, अससारमावन्नगा चेव, सासया चेव, असासया चेव ।
- स्थानागसूत्र स्थान २, उद्देशक १
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* यदस्ति लोके तत्सर्वं द्विप्रत्यवतार तद्यथा - जीवाश्चैव श्रजीवाइचैव त्रसाश्चैव स्थावराश्चैव, सयोनिकाश्चैव अयोनिकाश्चैव, सायुष्काश्चैव श्रनायुष्काश्चैव सेन्द्रियाश्चैव अनिन्द्रियाश्चैव, सवेदकाश्चैव श्रवेदकाश्चैव सरूपिनश्चैव श्ररूपिनश्चैव सपुद्गलाश्चैव प्रपुद्गलाश्चैव, संसारसमापन्नकाञ्चैव श्रससारसमापन्नकाश्चैव, शाश्वताश्चैव अशाश्वताश्चैव ।
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