Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 29
________________ (१२) सस्कृत-व्याख्या अथावगाहनामेवोत्कृष्टादिभेदत पाह-'तिण्णि सते' त्यादि, इय च पञ्चधनु शतमानाना 'चत्तारि ये' त्यादि तु सप्तहस्तानाम् ‘एगा ये' त्यादि द्विहस्तमानानामिति । इय च त्रिविधाऽप्यूर्ध्वमानमाश्रित्यान्यथा सप्तहस्तमानाना च उपविष्टाना सिद्धयतामन्यथाऽपि स्यादिति । प्राक्षेपपरिहारौ पुनरेवमत्र-ननु नाभिकुलकर पञ्चक्शित्यधिकपञ्चधनु शतमान: प्रतीत एव, तद्भार्यापि मरुदेवी तत्प्रमाणव, 'उच्चत्त चेव कूलगरेहि सममिति वचनात् अतस्तदवगाहना उत्कृष्टावगाहनातोऽधिकतरा प्राप्नोतीति कथ न विरोध ? पत्रोच्यते, यद्यपि उच्चत्व कुलकरतुत्य तद् योषितामित्युक्त, तथापि प्रायिकत्वादस्य स्त्रीणा च प्रायेण पुम्भ्यो लघुतरत्वात् पञ्चैव धनु – शतान्यसावभवत्, वृद्धकाले वा सकोचात् पञ्चधनु शतमाना सा अभवद्, उपविष्टा वाऽमौ सिद्ध ति न विरोध , अथवा बाहुल्यापेक्षमिदमुत्कृष्टावगाहनामान, मरुदेवी त्वाश्चर्यकल्पेत्येवमपि न विरोध , ननु जघन्यत सप्तहस्तोच्छितानामेव सिद्धि प्रागृक्ता, तत्कथ जघन्यावगाहना अष्टागुलाधिकहस्तप्रमाणा भवतीति ?, अत्रोच्यते, सप्तहस्तोच्छि तेषु सिद्धिरिति तीर्थंकरापेक्ष, तदन्ये तु द्विहस्ता अपि कूर्मपुत्रादयः सिद्धा: अतस्तेषा जघन्याऽवसेया, अन्येत्वाहु:-सप्तहस्तमानस्य सवर्तितागोपागस्य सिद्धयतो जघन्यावगाहना स्यादिति । हिन्दी-भावार्थ सिद्धो की उत्कृष्ट अवगाहना तीन सौ तेत्तीस धनुष और एक धनुष का तीसरा भाग मानी जाती है। सिद्धों की मध्यम अवगाहना एक हाथ का तीसरा भाग कम चार हाथ बतलाई गई है। सिद्धो की जघन्य अवगाहना आठ अगुल अधिक एक हाथ होती है।

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