Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 25
________________ ( 3 ) मूल पाठ * कहि पहिया सिद्धा ? कहि सिद्धा पडिट्टिया ? कहि बोदि चइता ण, कत्थ गतूण सिज्झइ ? || १|| संस्कृत - व्याख्या / अथ- प्रश्नोत्तर द्वारेण सिद्धानामेव वक्तव्यतामाह - कहि इत्यादि श्लोकद्वय, क्व प्रतिहता - क्व प्रस्खलिता सिद्धा मुक्ता ? तथा वव सिद्धा. प्रतिष्टिता व्यवस्थिता इत्यर्थ ? तथा क्व बोन्दि-शरीर त्यक्त्वा ? तथा क्व गत्वा सिज्झइ त्ति - प्राकृतत्वात् । से हु चाइत्ति वुच्च इ. इत्यादिवत् सिध्यन्तीति व्याख्येयमिति । हिन्दी - भावार्थ प्रतिहत होते है ? अर्थात् निष्कर्म आत्मा करती हुई कहा पर जा कर रुकती है ? सिद्ध कहा पर ऊपर की ओर गमन सिद्ध कहा पर जा कर ठहरते है ? सिद्ध कहा पर शरीर छोड़ते है और कहा पर जा कर सिद्धावस्था को प्राप्त करते है ? मूल पाठ + अलोगे पsिहया मिद्धा, लोयग्मे य पडिट्ट्यिा | इह बोन्दि चइता णं, तत्थ गन्तूण सिज्झइ || २ || * कुत्र प्रतिहता सिद्धा ?, कुत्र सिद्धाः प्रतिष्ठिता ? कुत्र बोन्दि (शरीर ) च त्यक्त्वा, कुत्र गत्वा सिध्यन्ति ? + अलोके प्रतिहता. सिद्धा, लोकाग्रे च प्रतिष्ठिता: । इह बोन्दि (शरीर ) त्यक्त्वा, तत्र गत्वा सिध्यन्ति ||

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