Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ अक्षसूत्र-अगम्या [क्षर के विरोधी धर्म से युक्त होने के कारण अक्षर को अखण्ड द्वादशी-(१) आश्विन शुक्ल एकादशी को यह व्रत ब्रह्म कहा गया है । कार्य-कारण रूप नश्वर को क्षर कहते प्रारम्भ होता है। उस दिन उपवास किया जाता है और हैं । इस विश्व में जो कुछ भी वस्तु वाणी से व्यवहृत द्वादशी को विष्णु-पूजा की जाती है । एक वर्ष के लिए होती है और जो प्रमेय है वह सब क्षर कहलाती है। तिथिव्रत होता है। जिसके अज्ञान से कृपणता और जिसके ज्ञान से ब्राह्मण्य है, (२) मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को भी अखण्ड द्वादशी उसे अक्षर जानना चाहिए।] कहते हैं । यह यज्ञों, उपवासों और व्रतों में वैकल्य दूर (४) अकार से लेकर क्षकार पर्यन्त ५१ वर्ण होते हैं, करती है। दे० हेमाद्रि, व्रतकाण्ड, पृ० १११७-११२४ । ऐसा मेदिनीकोश में कहा गया है। उक्त वर्ण निम्नांकित हैं : अगम्या-समागम के अयोग्य स्त्री । गम्या और अगम्या का स्वर विवरण यम ने इस प्रकार किया है : अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ए ऐ ओ या अगम्या नृणामेव निबोध कथयामि ते । औ अं अः । (१५) स्वस्त्री गम्या च सर्वेषामिति वेदे निरूपिता ।। व्यञ्जन अगम्या च तदन्या या इति वेदविदो विदुः । क वर्ग से लेकर प वर्ग पर्यन्त । (२५) सामान्यं कथितं सर्वं विशेषं शृणु सुन्दरि ।। अन्तःस्थ, ऊष्म तथा संयुक्त--- अगम्याश्चैव या याश्च निबोध कथयामि ताः । य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ । (११) शूद्राणां विप्रपत्नी च विप्राणां शद्रकामिनी ।। षाण्मासिके तु सम्प्राप्ते भ्रान्तिः संजायते यतः । अस्त्यगम्या च निन्द्या च लोके वेदे पतिव्रते। धात्राक्षराणि सृष्टानि पत्रारूढान्यतः पुरा ॥ शूद्रश्च ब्राह्मणी गच्छेद् ब्रह्महत्याशतं लभेत् ।। (बृहस्पति) तत्समं ब्राह्मणी चापि कुम्भीपाकं व्रजेद् ध्रुवम् । [किसी घटना के छः मास बीत जाने पर भ्रम उत्पन्न यदि शूद्रां व्रजेद् विप्रो वृषलीपतिरेव सः ।। हो जाता है, इसीलिए ब्रह्मा ने अक्षरों को बनाकर पत्रों में स भ्रष्टो विप्रजातेश्च चाण्डालात सोऽधमः स्मृतः । निबद्ध कर दिया है। ] विष्ठासमश्च तत्पिण्डो मूत्रं तस्य च तर्पणम् ।। लिपि पाँच प्रकार की है : तत् पितृणां सुराणाञ्च पूजने तत्समं सति । मुद्रालिपिः शिल्पलिपिलिपिर्लेखनीसम्भवा । कोटिजन्माजितं पुण्यं सन्ध्यया तपसाजितम् ।। गुण्डिका घूर्णसम्भूता लिपयः पञ्चधा स्मृताः ।। द्विजस्य वृषलीभोगान्नश्यत्येव न संशयः । [ मुद्रालिपि, शिल्पलिंपि, लेखनीसम्भव लिपि, गुण्डि ब्राह्मणश्च सुरापीतो विड्भोजी वृषलीपतिः ।। कालिपि, घूर्णसम्भूत लिपि, ये पाँच प्रकार की लिपियाँ हरिवासरभोजी च कुम्भीपाक वजेद् ध्रुवम् । कही गयी हैं। ] (वाराहीतन्त्र) दे० 'वर्ण' । गुरुपत्नी राजपत्नी सपत्नीमातरं प्रसुम् ।। अक्षसूत्र-तान्त्रिक भाषा में 'अ' से लेकर 'क्ष' पर्यन्त वर्ण सुतां पुत्रवधूं श्वधू सगर्भा भगिनीं सति । माला को अक्षसूत्र कहा गया है । यथा गौतमीय तन्त्र में : सोदरभ्रातृजायाश्च भगिनीं भ्रातृकन्यकाम् ।। पञ्चाशल्लिपिभिर्माला विहिता जपकर्मसु । शिष्याञ्च शिष्यपत्नीञ्च भागिनेयस्य कामिनीम् । अकारादिक्षकारान्ता अक्षमाला प्रकीर्तिता ।। भ्रातृपुत्रप्रियाश्चैवात्यगम्यामाह पद्मजः ।। क्षण मेरुमुखं तत्र कल्पयेन्मुनिसत्तम । एतास्वकामनेकां वा यो व्रजेन्मानवाधमः । अनया सर्वमन्त्राणां जपः सर्वसमृद्धिदः ।। स मातृगामी वेदेषु ब्रह्महत्याशतं लभेत् ॥ [ मुनिश्रेष्ठ ! जप कर्म में पचास लिपियों (अक्षरों) द्वारा अकर्मा)ऽपि सोऽस्पृश्यो लोके वेदेऽतिनिन्दितः । माला बनायी जाती है । अकार से लेकर क्षकार तक को स याति कुम्भीपाकं च महापापी सुदुष्करम् ।। अक्षमाला कहा गया है । अक्षमाला में 'क्ष' को मेरुमुख (ब्रह्म पु०, प्रकृतिखण्ड, अ० २७) बनाना चाहिए। इस माला से सब प्रकार की समद्धियाँ [ पुरुषों के लिए अगम्या स्त्री के सम्बन्ध में मैं कहता प्राप्त होती है । दे० 'माला' और 'वर्णमाला'। हूँ, सुनो। सबके लिए अपनी स्त्री गम्या है, ऐसा वेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 722