Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

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Page 17
________________ अक्रूरघाट अक्षर प्राप्त हुई। उसका स्मारक नौशेरा में बना हुआ है, जो हिन्दू एवं मुसलमान तीर्थयात्रियों के लिए समान श्रद्धा का स्थान है । अकालियों का मुख्य कार्यालय अमृतसर में 'अकाल बुंगा' है जो सिक्खों के कई पूज्य सिंहासनों में से एक है । अकाली लोग धार्मिक कृत्यों का निर्देश वहीं से ग्रहण करते है। ये अपने को खालसों का नेता समझते हैं। रणजीतसिंह के राज्यकाल में इनका मुख्य कार्यालय आनन्दपुर हो गया था, किन्तु अब इनका प्रभाव बहुत कम पड़ गया है । अकाली संघ के सदस्य ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं । उनका कोई नियमित मुखिया या विष्य नहीं होता, किन्तु फिर भी वे अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं। गुरु की जूठन बेले (शिव) प्रसाद रूप में खाते हैं। वे दूसरे सिक्खों की तरह मांस एवं मदिरा का सेवन नहीं करते, किन्तु भाँग का सेवन अधिक मात्रा में करते हैं । दे० सिक्ख । अक्रूरघाट - वृन्दावन से मथुरा जाते समय श्री कृष्ण ने अक्रूर को यमुनाजल में दिव्य दर्शन कराया था। इसीलिए इसका महत्त्व है । इसको 'ब्रह्मद' भी कहते हैं । यह मथुरा-वृन्दावन के बीच कछार में स्थित है । समीप में गोपीनाथजी का मन्दिर है। वैशाख शुक्ल नवमी को यहाँ मेला होता है। अक्षमाला (१) अ (रुद्राक्ष आदि) की माला, सुमिरनी या जपमाला । इसको अक्षसूत्र भी कहते हैं । ( २ ) वसिष्ठ की पत्नी का एक नाम भी अक्षमाला है । मनु ने कहा है -- 'अक्षमाला वसिष्ठेन संयुक्ताधमयोनिजा ।' [ नीच योनि में उत्पन्न अक्षमाला का वसिष्ठ के साथ विवाह हो गया । ] अक्षयचतुर्थी मंगल के दिन पड़ने वाली चतुर्थी, जो विशेष पुण्यदायिनी होती है। इस दिन उपवास करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । अक्षयफलावासि (अक्षयतृतीया ) - वैशाख शुक्ल तृतीया को विष्णुपूजा अक्षय फल प्राप्ति के लिए की जाती है । यदि कृत्तिका नक्षत्र इस तिथि को हो तब यह पूजा विशेष पुण्यप्रदायिनी होती है । दे० निर्णयसिन्धु, पृ० ९२-९४ । विष्णुमन्दिरों में इस पर्व पर विशेष समारोह होता है, जिसमें सर्वांग चन्दन की अर्चना और सत्तू का भोग लगाया जाता है । Jain Education International अक्षयनवमीकार्तिक शुक्ल नवमी इस दिन भगवान् विष्णु ने कूष्माण्ड नामक दैत्य का वध किया था। दे० व्रतराज, ३४ । अक्षयवट - प्रयाग में गङ्गा-यमुना संगम के पास किले के भीतर अक्षयवट है । यह सनातन विश्ववृक्ष माना जाता है । असंख्य यात्री इसकी पूजा करने जाते हैं । काशी और गया में भी अक्षयवट हैं जिनकी पूजा-परिक्रमा की जाती है। अक्षयवट को जैन भी पवित्र मानते हैं। उनकी परम्परा के अनुसार इसके नीचे ऋषभदेवजी ने तप किया था । अक्षर - (१) जो सर्वत्र व्याप्त हो। यह शिव तथा विष्णु का पर्याय है 'अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रशोऽक्षर एवं च' (महाभारत) अज ( जन्मरहित ) जीव को भी अक्षर कहते हैं । (२) जो क्षीण नहीं हो 'येनाक्षरं पुरुषं पुरुषं वेद सत्यम् प्रोवाच तं तत्त्वतो ब्रह्मविद्याम् ।' ( वेदान्तसार में उद्धृत उपनिषद्) [ जिससे सत्य और अविनाशी पुरुष का ज्ञान होता है उस ब्रह्मविद्या को उसने यथार्थ रूप से कहा । ] और भी कहा है : द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरः सर्वाणि भूतानि क्षरश्चाक्षर एव च । कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता) [ संसार में क्षर और अक्षर नाम के दो पुरुष हैं। सभी भूतों को क्षर कहते हैं । कूटस्थ को अक्षर कहते हैं ।] ब्रह्मा से लेकर स्थावर तक के शरीर को क्षर कहा गया है । अविवेकी लोग शरीर को ही पुरुष मानते हैं । भोक्ता को चेतन कहते हैं । उसे ही अक्षर पुरुष कहते हैं । वह सनातन और अविकारी है। (३) 'न क्षरति इति अक्षर:' इस व्युत्पत्ति से विनाशरहित, विशेषरहित, प्रणव नामक ब्रह्म को भी अक्षर कहते हैं । कूटस्थ, नित्य आत्मा को भी अक्षर कहते हैं : अराद्विरुद्धधर्मत्वादक्षरं ब्रह्म भण्यते । कार्यकारणरूपं तु नश्वरं क्षरमुच्यते ॥ यत्किञ्चिद्वस्तु लोकेस्मिन् वाचो गोचरतां गतम् । प्रमाणस्य च तत्सर्वमक्षरे प्रतिषिध्यते ॥ यदप्रवोधात् कार्पण्यं ब्राह्मण्यं यत्प्रबोधतः ॥ तदक्षर प्रवोद्धव्यं यथोक्तेश्वरवर्त्मना ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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