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चला रही हूँ। मैं अपनी सुयोग्य शिष्या साध्वी दीप्तिप्रज्ञा को विस्मृत नहीं कर पाऊँगी, जिसका सौम्य एवं सेवामय स्वभाव शोधनिमित्त जयपुर प्रवास के दौरान अध्ययन में पूर्णरूपेण उपयोगी बना।
अंत में मैं अपनी सुयोग्य प्रतिभाशालिनी सुशिक्षित आर्यावर्ग साध्वी शासनप्रभा M.A.,स्वर्ण पदक प्राप्त साध्वी नीलांजना M.A.प्रज्ञांजना, दीप्ति प्रज्ञा, नीतिप्रज्ञा एवं विभांजना की भी कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मेरे अध्ययन के लिये शान्त और नीरव परिवेश के निर्माण में अपना संपूर्ण योगदान दिया, अपनी समस्त संवेदनाओं को समाप्त कर मेरे अध्ययन की भूमिका का निर्माण किया, समस्त उत्तरदायित्वों से मुक्त कर मुझे निश्चित किया। शोध प्रबंध की प्रेस कॉपी साध्वी शासनप्रभा एवं नीलांजना ने तैयार की है। उन्हें मेरा हार्दिक आत्मीय मंगलमय आशीर्वाद है। वे निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर होकर अक्षय आनंद को उपलब्ध करें।
प्रस्तुत ग्रन्थ का लेखन मात्र उपाधि हेतु नहीं किया गया है अपितु इसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान की अपूर्व सम्पदा की प्राप्ति रहा है। इन षड्द्रव्यों का अध्ययन कर अपनी आत्मचेतना को शुद्ध और मुक्त बनाऊँ,इसी कामना के साथ मेरा यह प्रयास हुआ है।
इस मंजिल की प्राप्ति में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष सहयोगी वृन्द के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त करती हुई विद्वज्जनों की निष्पक्ष आलोचना सादर आमत्रित करती हूँ।
परमात्मा महावीर की अमृतवाणी को अगणित वंदना।
सादर साध्वी विद्युत्प्रभा श्री
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