Book Title: Dharma Sangraha Part 1
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 425
________________ प्रतिक्रमणविधिः-श्लो० ६५॥] [३८५ वंदित्तु चेइआइं, दाउं चउराइए खमासमणे । भूनिहिअसिरो सयलाइआरमिच्छाकडं देई ॥२॥[प्र.स./३] सामाइअपुव्वमिच्छामि, ठाउं काउस्सग्गमिच्चाइ । सुत्तं भणिअ पलंबिअभुअकुप्परधरिअपहिरणओ ॥३॥[प्र.स./४] घोडगमाइअदोसेहिं, विरहिअं तो करेइ उस्सग्गं । नाहिअहो जाणुद्धं चउरंगुलट्ठविअकडिपट्टो ॥४॥[] तत्थ य धरेइ हिअए, जहक्कम दिणकए अ अइआरे। पारेत्तु णमोक्कारेण पढइ चउवीसथयदंडं ॥५॥ [प्र.स./७] संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलग्गविअयबाहुजुओ। मुहणंतगं च कायं, पेहए पंचवीस इहं ॥६॥ [प्र.स./८] उठिओट्ठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं । बत्तीसदोसरहिअं, पणविसावस्सगविसुद्धं ॥७॥ [प्र.स./९] अह सम्ममवणयंगो, करजुगविहिधरिअपुत्तिरयहरणो । परिचिंतिअअइआरे, जहक्कम गुरुपुरो विअडे ॥८॥[प्र.स./१४] अह उवविसित्तु सुत्तं, सामाइअमाइअं पढिअ पयओ। अब्भुट्टिओ म्हि इच्चाइ, पढइ दुहओठिओ विहिणा ॥९॥[प्र.स./१५] दाऊण वंदणं तो पणगाइस जडस खामए तिन्नि । किइकम्मं करिआयरिअमाइगाहातिगं पढइ ॥१०॥ [प्र.स./१६] इअसामाइअउस्सग्गसुत्तमुच्चरिअ काउस्सग्गठिओ। चिंतइ उज्जोअदुगं, चरित्तअइआरसुद्धिकए ॥११॥[प्र.स./१७ ] विहिणा पारिअ सम्मत्तसुद्धिहेउं च पढइ उज्जोअं। तह सव्वलोअअरिहंतचेइआराहणुस्सग्गं ॥१२॥ [प्र.स./१८] काउं उज्जोअगरं, चिंतिअ पारेड सुद्धसम्मत्तो । पुक्खरवरदीवड़े, कड्डइ सुअसोहणनिमित्तं ॥१३॥ [प्र.स./१९] पुण पणवीसुस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरिआफलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥१४॥[प्र.स./२०] १. अइआर-मु० मध्ये कोष्ठके० C. प्रतो पार्श्वभागे ॥ D:\new/d-2.pm5\3rd proof

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