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चौमीम तीबफर पुराण *
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उन विद्याधर दतोंको वापिस भेज दिया। कुछ समय बाद राजा बज जंघ और श्रीमतीने पुनरीकिणी पुरीकी ओर प्रस्थान किया। उनके माथ महामन्त्री मति वर, पुरोहित आनन्द्र, सेठ धनमिन, और सेनापति अकम्पन भी थे। इन सबके साथ हाथी, घोड़ा, रथ, प्यादे आदिसे भरी हुई विशाल सेना थी। चलते चलते बज जंघ किसी सुन्दर मरोबर के पास पहुंचे वहां चारों ओर सेनाको ठहराकर स्वयं श्रीमतीके साथ अपने तम्बूमें चले गये। इतने में 'यदि वनमें अहार मिलेगा तो लेवंगे, गांव नगर आदिमें नहीं' ऐसी प्रतिज्ञाकर दो मुनिराज आकाशमें बिहार करते हुए वहांसे निकले । जब उन मुनियोंपर राजाकी दृष्टि पड़ी तब उसने उन्हें भक्ति सहित पड़गाहा और श्रीमतीके साथ शुद्ध सरस आहार दिया । जव आहार लेकर मुनिराज वनकी ओर विहार कर गये तव राजा बज जंघसे उनके पहरेदारने कहा कि महाराज ! ये युगल मुनि आपके सबसे लघु पुत्र हैं । आत्मशुद्धिके लिये हमेशा बनमें ही रहते हैं। यहांतक कि आहारके लिये भी नगरमें नहीं जाते। यह सुनकर बनजंघ और श्रीमतीके शरीरमें हर्पके रामांच निकल आये । वे दोनों लपककर उसी ओर गये जिस ओर कि मुनिराज गये थे।
निर्जन वनमें एक शिलापर बैठे हुए मुनि युगलको देखकर राज दम्पतिके हर्णका पार नहीं रहा । राजा रानीने भक्तिसे मुनिराजके चरणों में अपना माथा झुका दिया तथा विनय पूर्वक वैठकर उनसे गृहस्थ धर्मका व्याख्यान सुना । इसके बाद अपने और श्रीमतीके पूर्व भव सुनकर राजाने पूछा- हे मुनिनाथ ! ये मतिवर, आनन्द, धनमित्र और अकम्पन मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मेरा भी इनमें अधिक स्नेह है इसका क्या कारण है ? उत्तरमें मुनिनाथ बोले'राजन् ! अधिकतर पूर्वभवके संस्कारोंसे ही प्राणियों में परस्पर स्नेह या द्वेष रहा करता है । आपका भी इनके साथ पूर्वभवका सम्बन्ध है । सुनिये मैं इनके पूर्वभव सुनाता हूँ।'
जम्बूद्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें एक वत्सकावती देश है उसमें प्रभाकरी नामकी एक सुन्दर नगरी है। वहांके राजा का नाम नरपाल था। नरपाल हमेशा आरम्भ परिग्रहमें लीन रहता था इसलिये वह मरकर पंक प्रभा नामके नरकमें
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