Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 13
________________ बडा अंतर है, फिर भी उनकी किरणे एक स्थान से दूसरे स्थान में इथर के माध्यम से जाती है । इस बात का स्वीकार करके वैज्ञानिक श्री ओ ओस. अंडोंगरन ने कहा है कि Nowadays it is agreed that ether is not a kind of matter, being non-material its properties are suigeneries Charactors such as mase and rigidity which we meet with in matter will naturlly be absent in ether, but the ether will have new and detinition charactors of is own.. non material owan of ether. अन्य अंक दूसरे विद्वान ने भी कहा है कि Science and Jain Physics agree absolutely so far as they call Dharma (Ether) non material, non - atomic, non - discrete Continous Co - Exensive with space dividule and as a necessdry medium for motion and one which does not itself move. - इसका भावार्थ यह है कि वैज्ञानिकों द्वारा आज स्वीकार किया गया है कि इथर भौतिक पदार्थ नहीं है । जैन दर्शन से वे सहमत है कि इथर (धर्मास्तिकाय) अभौतिक, अपरमाणविक, अविभाज्य, अखंड आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त अदृश्य गति का माध्यम व स्वयं स्थिर है। (२) अधर्मास्तिकाय :- जो द्रव्य जीव और जड को स्थिर रहने में सहायता करता है, उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं | जैसे बूढ़े मनुष्य को लाठी स्थिर रहने में सहायता करती है । इसी प्रकार कर्म से मुक्त बने हए सिद्धात्माओं को सिद्ध शिला के ऊपर मोक्ष में अनन्तकाल तक स्थिर रहने में अधर्मास्तिकाय सहायता करता है। (३) आकाशास्तिकाय :- जिसमें जीव व जड को अवकाश देने का गुण हो, उसे आकाशास्तिकाय कहते हैं । यदि आकाश शून्य होता, तो उसमे अवकाश देने का सामर्थ्य गुण नहीं रहता । इसलिये अवकाश देने वाला द्रव्य आकाश कहलाता है । जिसमें धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य रहते हैं। (४) जीवास्तिकाय :- जिस द्रव्य में ज्ञान (चैतन्य), सुख वगैरह गुण रहते हैं, उसे जीवास्तिकाय कहते हैं । जीव, चेतन, आत्मा वगैरह इसके पर्याय वाची शब्द है । शेष ५ द्रव्य जड हैं | (५) पुद्गलास्तिकाय :- जिस द्रव्य में काला, नीला, पीला, लाल, |चित्रमय तत्वज्ञान ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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