________________
१२ पुद्गगल परावर्तन
अनन्त कालचक्र = १ पुद्गल परावर्त होता है। पुद्गल परावर्त के द्रव्यादि ४ प्रकार होते हैं । प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं, सूक्ष्म व बादर । कुल ८ भेद होते हैं ।
(१) बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त :- पुद्गलों की औदारिक आदि आठ वर्गणाएँ जीव के उपयोग में आती है । उनमें से आहारक वर्गणा को छोड़कर औदारिक आदि ७वर्गणा के रूप में समस्त पुद्गलों को तिर्यंच आदि भवों में एक जीव ग्रहण करके छोड़ने में जितना काल व्यतीत करता है, उसे बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं । (२) सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त :- उन औदारिक आदि ७ वर्गणा (८१ आहारक वर्गणा) में से एक वर्गणा के रूप में (जैसे कि औदारिक वर्गणा या वैक्रिय वर्गणा या तेजस वर्गणा या भाषा वर्गणा या श्वासोच्छ्वास वर्गणा या मनोवर्गणा या कार्मण दर्गणा के रूप में) एक जीव समस्त पुगलों को ग्रहण करके छोड़ने में जितना समय व्यतीत करता हैं, उसे सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलं परावर्त कहते हैं । (३) बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्त :- १४ रज्जू प्रमाण लोक के आकाश प्रदेश असंख्यात होते हैं। उन सभी आकाश प्रदेशों को एक जीव मृत्यु द्वारा स्पर्श करे अर्थात् पहली बार मृत्यु के समय अमुक आकाश प्रदेशों को स्पर्श करके मरा । बाद में दूसरी बार अमुक प्रदेशों को स्पर्श करके जीव मरा। बाद में तीसरी बार अमुक आकाश प्रदेशों को स्पर्श करके मरा । यदि पहले जिन आकाश प्रदेशों को स्पर्श करके मरा है उन्हीं आकाश प्रदेशों को ही स्पर्श करके वापस मरेगा, तो वह क्षेत्र दूसरी बार गिनती में नहीं गिना जायेगा । जब नये आकाश प्रदेशों को ही स्पर्श करके मरेगा, तब वह गिनती में गिना जायेगा । इस प्रकार मृत्यु द्वारा विश्व के सभी आकाश प्रदेशों को मृत्यु द्वारा स्पर्श करने में एक जीव को जितना समय बीतता है, वह बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्त कहलाता है ।
चित्रमय तत्वज्ञान
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
५४
www.jainelibrary.org