Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 78
________________ (६) छडा आरा :- इसका दूसरा नाम दुषम दुषम (दु:ख ही दुःख) आता है । इसका प्रमाण २१००० वर्ष है । प्रारंभ में २० वर्ष का आयुष्य व २ हाथ का शरीर होता है और अन्त में १६ वर्ष का आयुष्य व एक हाथ का शरीर होता है । इस आरे के अन्दर दिन में भीषण गर्मी पड़ती है । नदी के किनारे पर बिल बने हुए होते हैं, लोग ताप से बचने के लिये दिन को उसमें चले जाते हैं, रात्रि को बाहर निकलते हैं और नदी की वालुका (बजरी) में पकाने हेतु जो मछलियां पहली रात्रि में रखी हो, वे निकाल कर खाते हैं और नयी मछलियां वालूका में ढक कर रख देते हैं, जिससे सूर्य की तीव्र गर्मी से दिन में पक जाये । इस प्रकार जीवन जी कर मर करके ज्यादतः नरक में जाते हैं। इससे विपरीत क्रम से उत्सर्पिणी के ६आरे होते हैं । १ उत्सर्पिणी = १० कोटा कोटी सागरोपम : छल्ला आस ४ कोटा कोटी सागरोपम + पांचवा आरा ३ कोटाकोटी सागरोपम + चोथा आरा २ कोटा कोटी सागरोपम : तीसरा आरा १ कोटाकोटी सागरोपम में कम ४२००० वर्ष : दूसरा आरा २१००० वर्ष : पहला आरा २१००० वर्ष होते हैं। |चित्रमय तत्वज्ञान ५३ 3600Contematara 500Rer5o4Rryste:58ORY www.jainelibrary.org.

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