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में अमुक समय को स्पर्श करके मरा, बाद में पांचवे आरे के उससे भिन्न अमुक समय को स्पर्श करके मरा , उसके बाद छट्टे आरे के अमुक समय को स्पर्श करके मरा, इस प्रकार अनन्तर व परम्परा से उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी के सभी समयों को मृत्यु द्वारा स्पर्श करके मरने में जो काल व्यतीत होता है, उसको बादर काल पुद्गल परावर्त कहते हैं । जब कि उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी के सभी समयों को मृत्यु द्वारा क्रमशः स्पर्श करता है, जैसे कि अवसर्पिणी के या सभी पांचवा आरे के अमुक समयों को मृत्यु द्वारा , स्पर्श किया, उसके बाद अवसर्पिणी के पांचवे आरे के अनन्तर दूसरे समय को मृत्यु द्वारा स्पर्श करेगा, तब वह गिनती में गिना जायेगा । उसी प्रकार क्रमशः अनन्तर - अनन्तर समय को स्पर्श करता हुआ अवसर्पिणी (या उत्सर्पिणी) के सभी समयों को मृत्यु
द्वारा स्पर्श करता है । तब सूक्ष्म काल पुद्गल परावर्त होता है | (७) बादर भाव पुद्गल परावर्त :- रसबंध के अध्यवसाय (विचार)
असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है, उनमें से एक-एक अध्यवसाय को मृत्यु द्वारा अनन्तर और परम्परा से स्पर्श करते हुए सभी अध्यवसायों को स्पर्श करने में जितना समय जावे , उसे बादर भाव पुद्गल परावर्त कहते हैं । सूक्ष्म भाव पुद्गल परावर्त :- रस बंध के एक-एक अध्यवसाय को मृत्यु द्वारा अनन्तर क्रमशः स्पर्श करता हुआ सभी अध्यवसायों को स्पर्श जितने काल में करें, वह सूक्ष्म भाव पुद्गल परावर्त कहलाता है । बादर भाव पुद्गल परावर्त और सूक्ष्मभाव पुद्गल परावर्त किसी भी जीव को पूर्ण होते ही नहीं, क्योंकि क्षपक श्रेणि के अन्दर जो रसबन्ध के अध्यवसाय होते हैं, उन सभी को मृत्यु द्वारा कोई भी जीव स्पर्श नहीं करता है । एवं एक स्थिति स्थान में असंख्यात अध्यवसाय होते हैं, उनमें से क्षपक श्रेणि पर चढ़ने वाले जीव सभी अध्यवसायों को स्पर्श नहीं करते, क्योंकि वह जीव वापस नीचे नहीं उतरता । इसलिये भाव पुद्गल परावर्त पूर्ण नहीं होता है।
चित्रमय तत्वज्ञान
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