Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 82
________________ सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्त :- लोक के सभी आकाश प्रदेशों को क्रमशः मृत्यु द्वारा स्पर्श करने पर सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्त होता है । अर्थात् बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्त में यह बताया गया है कि अनन्तर व परम्परा से नये-नये आकाश प्रदेशों को मृत्यु द्वारा स्पर्श करता है । जब कि सूक्ष्म पुद्गल परावर्त में अनन्तर नये-नये आकाश प्रदेशों को मृत्यु द्वारा स्पर्श करता है । अर्थात जिन आकाश प्रदेशों को स्पर्श करके मृत्यु को प्राप्त हुआ, उसके बिल्कुल पास में ही रहने वाले आकाश प्रदेशों को स्पर्श करके मरेगा, तब ही वह गिनती में गिना जायेगा । दूर पर रहे हुए आकाश प्रदेशों को स्पर्श करके मरेगा, तो वे गिनती में नहीं गिने जायेगे । इस प्रकार मृत्यु द्वारा क्रमशः अनंतर अनंतर आकाश प्रदेशों को स्पर्श करता हआ जीव सारे विश्व के आकाश प्रदेशों को स्पर्श जितने काल में कर लेता है, उसको सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्त कहते हैं। बादर काल पुद्गल परावर्त :- एक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी में असंख्यात समय होते हैं । उन समयों को अनन्तर व परम्परा से मृत्यु द्वारा स्पर्श करने में जितना काल बीतता है, उसे बादर काल पुद्गल परावर्त कहते हैं । अर्थात् पहले अवसपिणी या उत्सर्पिणी के जिस समय को स्पर्श करके मरा हो, दुसरी बार यदि उसी समय को स्पर्श करके मरेगा, तो वह समय दूसरी बार गिनती में नहीं गिना जायेगा । यदि दूसरे समय को स्पर्श करके मरेगा, तो वह गिनती में गिना जायेगा । इस प्रकार उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी के सभी समयों को अनंतर व परम्परा से मृत्यु द्वारा स्पर्श होने पर बादर काल पुद्गल परावर्त होता है । सूक्ष्म काल पुद्गल परावर्त :- उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी के समयों को मृत्यु द्वारा क्रमशः स्पर्श करता है, तब सूक्ष्म काल पुद्गल परावर्त होता है । बादर काल पुद्गल परावर्त में तो बताया गया है कि उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी के सभी समयों को मुत्य द्वारा अनन्तर व परम्परा से स्पर्श करता है । सूक्ष्म और बाहर काल पुद्गल परावर्त में विशेष यह है कि जीव अवसर्पिणी के पांचवे आरे चित्रमय तत्वज्ञान ५५ alone international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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