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तीसरे गुणस्थान पर व मिथ्यात्व का उदय होने से पुनः जीव पहले मिथ्यात्व गुणस्थानक पर चला जाता है ।
औपशमिक सम्यग्दर्शन पाने के बाद आत्मा पुनः मिथ्यात्व में चली जाती है । तो भी वह देशोन अर्धपुदल परावर्तन में अवश्य मोक्ष में जाती है । इसलिये अक किसान को उपदेश देकर गौतमस्वामीजी ने दीक्षा दी। उसके बाद उन्होंने कहा कि अब हम अपने गुरु महाराज के पास जा रहे हैं । जो मेरे से भी महान हैं । इस प्रकार उसके दिल में परम गुरु भगवान के प्रति अहोभाव खुब जगाया । इससे उसने तीन करण करके सम्यक्त्व पा लिया । परंतु समवसरण को देख कर उसे भगवान महावीर स्वामी के प्रति द्वेष जगा, वह गौतमस्वामीजी को रजोहरण देकर के चला गया । भगवान ने कहा कि अरे गौतम ! खेद मत कर, जो पाने जैसा सम्यग्दर्शन था, वह उसने पा लिया है | उसका जीवन सफल हो गया है । हम भी देव गुरु पर अहोभाव पैदा करके सम्यग्दर्शन पाकर मोक्ष निश्चित करें।
चित्रमय तत्वज्ञान
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