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है । ६४ दिन तक उनका पालन करती है । बाद में वे स्वावलम्बी हो जाते है, मर कर देवलोक में उत्पन्न होते है। तीसरा आरा :- इसका दूसरा नाम सुषम दुषम (सुख बहत व दुःख कम) है । इसका प्रमाण २ कोटा-कोटी सागरोपम है । इनके ६४ पसलियाँ होती है । इनका एक गाऊ का शरीर होता है। प्रारंभ में १ पल्योपम का आयुष्य होता है । एक - एक दिन के बाद आंवला जितना भोजन करते हैं । ६ महीने शेष रहने पर स्त्री एक युगल को जन्म देती है । ७९ दिन तक पालन करती है । बाद में वह स्वावलम्बी हो जाता है व मरकर देव बनता है । इसके अंत में जब ८४ लाख पूर्व (पूर्व = ८४ लाख वर्ष x ८४ लाख वर्ष)
और ३ वर्ष ८ 12 महीने बाकी रहते हैं, तब प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है । ८३ लाख पूर्व जाने पर १ लाख पूर्व और ३ वर्ष ८12 महीने बाकी रहने पर भगवान दीक्षा लेते हैं। उसके बाद १ चक्रवती बनता है और ३ वर्ष ८ 12 महीने शेष रहने पर भगवान मोक्ष में जाते हैं। चौथा आरा :- इसका दूसरा नाम दुषम सुषम (दुःख ज्यादा व सुख कम) आरा है । इसका प्रमाण ४२००० वर्ष न्यून १ कोटाकोटी सागरोपम है । प्रारम्भ में ३२ पसलियाँ, ५०० धनुष का शरीर, पूर्व करोड वर्ष का आयुष्य होता है । इसमें २३ तीर्थंकर, ११ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव , ९ प्रतिवासुदेव होते हैं । इसके ३ वर्ष ८ 12, महीने बाकी रहने पर चौबीसवें तीर्थंकर मोक्ष में जाते हैं। पांचवा आरा :- इसका दूसरा नाम दुःषम (सिर्फ दुःख) आरा है। इसका प्रमाण २१००० वर्ष का है । प्रारम्भ में १६ पसलियाँ, ७ हाथ का शरीर व १३० वर्ष का आयुष्य होता है । इसमें जन्मी हुई आत्मा उसी भव में मोक्ष में नहीं जाती । मर कर चार गति में से किसी भी गति में जाती है।
|चित्रमय तत्वज्ञान
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Heeromematramar
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