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| ४ तिर्यग्लोक में ढाई द्वीप
(१) हम पहले बता चूके हैं कि तिर्यग् लोक में रत्नप्रभा पृथ्वी के मध्य में थाली के आकार का १ लाख योजन चौडाई वाला जम्बू द्वीप है। उसके चारों ओर दो लाख योजन चौडाई वाला कंगन के आकार का लवण समुद्र है । उसके चारों ओर ४ लाख योजन चौडाई वाला कंगन के आकार का घातकी खंड है । उसके चारों तरफ ८ लाख योजन चौडाई वाला कंगन के आकार का कालोदधि समुद्र है। उसके चारों ओर १६ लाख योजन चौडाई वाला कंगन के आकार का पुष्करवर द्वीप है । उसके आगे द्विगुण द्विगुण चौडाई वाले कंगन आकार के क्रमशः पुष्करवर समुद्र, ४ वारुणी वर द्वीप, वारुणीवर समुद्र, ५ क्षीरवर द्वीप, क्षीरवर सागर, ६ घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, ७ ईक्षुवर द्वीप, ईक्षुवर समुद्र, ८ नंदीश्वर द्वीप है । उसके बाद समुद्र व द्वीप ओक ओक अन्तर से अलग अलग नाम से है । अन्तिम समुद्र स्वयंभूरमण है । वहां तिर्यग् लोक का अन्त है । उसकी चौडाई असंख्यात योजन है ।
लवण समुद्र का पानी खारा है । कालोदधि, पुष्करवर और समुद्र स्वयंभू रमण का पानी अपने पानी के जैसे स्वाद वाला है । उसके आगे के समुद्रों के जैसे नाम है, वैसे ही शराब, दूध, घी, ईक्षुरस वगैरह जैसे स्वाद वाला पानी उन समुद्रों में होता है ।
ढाई द्वीप = मनुष्यलोक
तिर्यग्लोक के मध्य में जम्बू द्वीप १ लाख योजन प्रमाण है । उसके पूर्व व पश्चिम दोनों ओर २ - २ लाख योजन प्रमाण लवण समुद्र २ + २ = ४ लाख योजन प्रमाण हैं |
उसके दोनों ओर ४ - ४ लाख योजन घातकी खंड ४ + ४ = ८ लाख योजन प्रमाण है, उसके दोनों ओर ८ - ८ लाख योजन कालोदधि समुद्र ८+८= १६ लाख योजन प्रमाण है पुष्कर वर द्वीप को कंगन के आकारवाला मानुषोत्तर पर्वत विभाजित करता हैं, उस आधे पुष्कर वर
चित्रमय तत्वज्ञान
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