Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 73
________________ ११ काल चार द्रव्यों का वर्णन करके अब पांचवें काल द्रव्य का वर्णन करते हैं | काल दो प्रकार का होता है । (१) निश्चय व (२) व्यवहारकाल निश्चयकाल वस्तु के वर्तनादि पर्यायरूप है । व्यवहारकाल समय आवलिका वगैरह रूप है, कल्पना से समयों को इकट्ठा करके आवलिका आदि का हम व्यवहार करते हैं । नया पुराना कहने का व्यवहार काल से होता है । सब से छोटा काल का अविभाज्य अंश १ समय है । असंख्यात सम ४१ परिबका पई नापलिका Eny क्षुल्लक भव = १ श्वासोच्छवास, ७ श्वासोच्छवास = १ स्तोक, ७ स्तोक = १ लव, १८, लव = १ घडी, २ घडी = १ मुहूर्त अथवा मुहूर्त = ४८ मिनट = ६५५३६ क्षुल्लक भव । ९ समय से १ समय न्यून मुहूर्त = अन्तर्मुहूर्त । ३० मुहूर्त = १ दिन, १५ दिन = पक्ष, २ पक्ष = १ मास, २ मास = १ ऋतु. ३ ऋतु = अयन, २ अयन = १ वर्ष , ८४ लाख वर्ष = १ पर्वांग, ८४ लाख पर्वांग = पर्व यानी ७०५६ अरब वर्ष, असंख्यात वर्ष = १ पल्योपम । (पल्योपम) प्रश्न :- पल्योपम को स्पष्ट समझाईये उत्तर :- १ योजन (४ गाऊ) लम्बा चौड़ा व गहरा खड्डा खोद कर उसमें ७दिन के युगलिक मनुष्य के एक एक बाल के असंख्यात टकडे कर ठुस ठंस कर इस प्रकार भर दिये जाये कि चक्रवर्ती के ९६ करोड सैनिक उस पर चले, तो १/४ सेन्टीमीटर भी जगह न हो | उसमें से ११ बाल १०० वर्ष पूरे होने पर निकालते हुए खड्डा खाली होने पर काल १ पल्योपम होता है । १० करोड x १ करोड पल्योपम = १० कोटा कोटी पल्योपम = १ सागरोपम । चित्रमय तत्वज्ञान ५० 18 Piyate sse on www.jainelibrary.org

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