Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 31
________________ शरीर एक भोग्य वस्तु है, तो उसकी सम्हाल लेने वाला कोई अलग पदार्थ होना चाहिए, जिस प्रकार भोग्य कपड़े मैले होने पर उपभोक्ता उसको स्वच्छ बनाता है, ठीक उसी प्रकार शरीर को स्वच्छ बनाने के लिये आत्मा प्रयत्न करती है। ७. शरीर एक कारखाना है, पेट बॉइलर है, हृदय मशीन है, दिमाग मेनेजर है, आत्मा मालिक है। जैसे ही आत्मा शरीर को छोड़ देती है, उसी समय शरीर रूपी कारखाना बन्द हो जाता है । ८. आत्मा चक्षु आदि इन्द्रियों से भी भिन्न है । चक्षु आदि इन्द्रियों को हम आत्मा नहीं कह सकते, क्योंकि मृत शरीर में चक्षु होने पर भी वे ज्ञान नहीं कर सकती । एवं भिन्न - भिन्न इन्द्रियों से ज्ञान का एकीकरण आत्मा के सिवाय संभव नहीं है । जैसे कि जिस आम को मैंने देखा है, उसी को सूंघता हूं | उसी का स्वाद करता हूं, उसी की आवाज सुनता हूं, उसी का स्पर्श करता हूं | इस प्रकार भिन्न - भिन्न इन्द्रियों से जो ज्ञान होता है, उसका एकीकरण आत्मा के सिवाय कौन कर सकता है ? इन्द्रियों के नाश होने पर भी अर्थात् किसी-किसी इन्द्रियों का नाश होने पर भी स्मृति होती है । स्मृति का यह नियम है कि जिसको अनुभव हुआ हो, उसी को स्मृति होती है । यदि आंखों को ही ज्ञान करने वाली आत्मा मानी जाये, तो आंखों से अंधे होने पर भी स्मृति क्यों होती है ? इसलिये ज्ञान करने वाली चक्ष आदि इन्द्रियां नहीं हैं, परन्तु आत्मा स्वयं है, चक्षु तो उसके माध्यम हैं। १०. नये - नये विचार, इच्छा, हाथ - पैर आदि के हलन चलन की क्रिया का प्रयत्न करने वाली आत्मा है, वह चाहे तो विचार आदि चालू रखे, वह चाहे तो बन्द कर सकती है । ११. आत्मा नहीं है । इस प्रकार बोलने से भी आत्मा सिद्ध होती है। दुनियां में कोई चीज विद्यमान होती है, उसी का निषेध किया जाता है। एवं आत्मशब्द का प्रयोग भी आत्मद्रव्य के बिना नहीं हो सकता है । |चित्रमय तत्वज्ञान १८ । emasna Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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