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(ii) क्षायोपशमिक सम्यक्दृष्टि :- जैसे कचरे वाला मिश्रित पानी हो,
वैसे जिस आत्मा के उदय में आने वाले मिथ्यात्व का समकित मोहनीय रूप से क्षय और उदय में नहीं आने वाले मिथ्यात्व का उपशम होता है, वह क्षायोपशम सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा कहलाती है । इस आत्मा को सिर्फ सम्यक्त्व मोहनीय का उदय होता है । (iii) क्षायिक सम्यगदृष्टि :- जैसे कचरे को बाहर फेंक देने से पानी स्वच्छ निर्मल हो जाता है, वैसे ही जो आत्मा सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय व मिथ्यात्व मोहनीय का क्षय करती है, वह क्षायिक सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा कहलाती है ।
इन आत्माओं को वीतराग भगवान द्वारा पापनिवृत्ति आदि तत्त्वों पर श्रद्धा होती हैं । मगर कर्म के कारण १२ व्रत में से १ व्रत का भी पालन नहीं कर पाती हैं। इस प्रकार उनका मानस सदा बना रहता है । जैसे श्रेणिक महाराजा ।
देश विरत अन्तरात्मा :- यह आत्मा सम्यग्दर्शन पूर्वक देश विरति के बारह व्रत या उनमें से कोई ओक व्रत का पालन करती है । १२ व्रत इस प्रकार है । ५ अणुव्रत+३ गुणव्रत+४ शिक्षाव्रत= १२ व्रत महाव्रतों की अपेक्षा से छोटे होने से अणुव्रत
५ अणुव्रत :कहलाते हैं ।
(१) स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत :- चलते फिरते निरपराधी, निष्कारण, निरपेक्ष भाव से त्रस जीव को मारने की बुद्धि से मारना नहीं व मरवाना नहीं ।
(२) स्थूल मृषावाद विरमण व्रत :मनुष्य, पशु व जमीन के विषय में झूठ नहीं बोलना, धरोहर का इन्कार नहीं करना व झुठी साक्षी नहीं देना ।
(३) स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत :- बडी चोरी, डाके डालना वगैरह
न करना ।
(४) स्थूल मैथुन विरमण व्रत :- परस्त्री (पर पुरुष) का त्याग करना । चित्रमय तत्वज्ञान
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