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मनुष्य के ३०३ भेद :- हम मनुष्यलोक में है। मनुष्य लोक के मध्य में जम्बूद्वीप है, हम जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में है । जम्बू द्वीप के चारों ओर कंगन के आकारवाला लवण समुद्र है । उसके चारों ओर कंगन के आकार में घातकी खंड नाम का द्वीप हैं । उसके चारों ओर कंगन के आकार में कालोदधि समुद्र है । उसके चारों ओर कंगन के आकार वाला पुष्करवर द्वीप है । इसका विभाजन दो भागों में चारों ओर कंगन के आकारवाले मानुषोत्तर पर्वत से होता है। (१५) कर्म भूमि :- जहाँ पर व्यापार, खेती, शस्त्रों से युद्ध व राज्यादि की व्यवस्था व मोक्षसाधक चारित्र होते हैं, वे कर्म भूमि कहलाती है । वे जम्बू द्वीप में १ भरत + १ ऐरवत + १ महाविदेह = 3 कर्म भूमि है । घातकी खंड में २ भरत +२ ऐरवत +२ महाविदेह = ६ कर्म भूमि है । पुष्कर वर द्वीपार्ध में २ भरत + २ ऐरवत + २ महाविदेह = ६ कर्म भूमि है | उनमें उपर्युक्त रीति से ५ भरत, ५ एरवत व ५ महाविदेह होने से १५ कर्मभूमि हैं | (३०) अकर्म भूमि :- जहाँ पर व्यापार, खेती, शस्त्रों से युद्ध, राज्यादि की व्यवस्था व मोक्ष साधक चारित्र नहीं होता है, वे अकर्मभूमि कहलाती हैं । वहाँ युगलिक मनुष्य होते हैं । जम्बू द्वीप में 'हिमवंत 'हरिवर्ष + १ देवगुरु + 'उत्तरकुरु ,१ रम्यक्षेत्र + १ हिरण्यवंत =६ अकर्म भूमि हैं । घातकी खंड में हिमवंत +२ हरिवर्ष २देवकुरु २ उत्तरकुरु २ रम्यक् क्षेत्र २ हिरण्यवंत = १२ अकर्मभूमि है । और पुष्करवर द्वीपार्ध में हिमवंत +२ हरिवर्ष +२ देवकुरु ,२ उत्तरकुरु ,२ रम्यक् क्षेत्र + हिरण्यवंत = १२ अकर्मभूमि है । इस प्रकार ६+१२-१२=३० । उनमें उपर्युक्त रीति से कुल पहिमवंत , "हरिवर्ष, ५देवकुरु, 'उत्तरकुरु, परम्यक्षेत्र, ५ हरिण्यवंत कुल ३० अकर्म भूमि होती है । (५६) अन्तर्वीप - लघु हिमवंत और शिखरी पर्वत में से पूर्व व पश्चिम में दो दो दाढाएँ (दाढ की आकृति के दो - दो पर्वतीय भाग) लवण समुद्र में गये हैं अर्थात् ८ दाढाएँ लवण समुद्र में गई
चित्रमय तत्वज्ञान
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