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(३) तिर्यंच :- पुण्य करने से मनुष्य गति व देवगति में तिर्यंच उत्पन्न
होते हैं व पाप करने से नरक और तिर्यंच में उत्पन्न होते हैं । जैसे (१) यशोधर राजा का जीव तिर्यंच मुर्गा पुण्य करके मनुष्य बना (२) कम्बल शम्बल तिर्यंच बैल मर करके देव बने, (३) भगवान महावीर स्वामी का जीव सिंह पाप करके मरकर के नरक मे गया! (४) रूपसेन का जीव पाप करने से सर्प बन कर पुनः पाप करने से कौंआ बना। नारक :- मरकर नारक व देव नहीं बनता । वह पाप करने पर तिर्यंच व पुण्य करने पर मनुष्य ही बनता है । (१) जैसे भगवान महावीर स्वामी का जीव सातवीं नरक में से २० वे भव में सिंह बना (२) श्रेणिक महाराजा का जीव नारक में से पुण्य करके मनुष्य बनेगा। शुभ गति पुण्य से व अशुभ गति पाप से प्राप्त होती है । हमेशा ओक ही गति में रहने की कोई मोनोपोली या सजा नहीं है । इसलिये सद्गति के लिये पुण्य व दुर्गति के लिये पाप कारण है।
चित्रमय तत्वज्ञान
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