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१०. आध्यात्मिक विकास कार्यक्रम
जीव कभी था नही, नहीं है और नहीं होगा, ऐसा नहीं हैं, यानी अनादि काल से संसार में जीव था, है और रहेगा । वह अनादि काल से कर्म के संयोग से युक्त है । कभी ऐसा हुआ नहीं कि वह कर्म संयोग से मुक्त होकर वापस कर्म संयोग से युक्त बन गया हो । अब यह प्रश्न होता है कि अनादिकाल से जीव कहां रहता है ? इसका उत्तर यह है कि वनस्पतिकाय का ओक विभाग सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय जिसे सूक्ष्म निगोद कहते हैं । वहां पर अपने आयुष्य कर्म के अनुसार जन्म व मरण करता रहता है । वहां रज से भी छोटे कण यानी अगुंल के असंख्यातवें भाग प्रमाण शरीर में ऐसे अनन्त जीव रहते हैं | आयुष्य पूर्ण होने पर वैसे ही ओक शरीर में अनन्त जीव उत्पन्न हो जाते हैं, इसी प्रकार वहां यह जीव जन्म मरण करता रहता है । जब तक यह जीव वहाँ से बाहर निकल कर बादर निगोद - पृथिवीकाय वगैरह में जन्म नहीं पाता, तब तक वह जीव अव्यवहार राशि निगोदं के रूप में पहचाना जाता है । अव्यवहारराशि निगोद राजलोक में ठूसठूस कर भरी हुई है । हरेक जीव ने अव्यवहार राशि निगोद में ही अनंत पुद्गल परावर्तन तक जन्म मरण किये हैं । वहां से बाहर निकल कर जब मूली, गाजर वगैरह बादर निगोद और पृथिवीकाय वगैरह में उत्पन्न हो या बादर निगोद में उत्पन्न होकर वापस सूक्ष्म निगोद में चला भी जाता है, तो भी वह व्यवहार राशि का ही जीव कहलाता है।
प्रश्न :- अव्यवहार राशि में से जीव कब बाहर निकलता है ?
उत्तर :- जब विश्व में कोई एक जीव सब कर्म का नाश करके मोक्ष में जाता है । तब एक जीव अव्यवहारराशि का त्याग करके बाहर निकल कर व्यवहार राशि बादर निगोद वगैरह में आता है । वास्तव में तो जीव अपनी भवितव्यता से बाहर निकलता है । परंतु व्यवहार नय से सिद्ध भगवान के निमित्त से बाहर निकलता है । यदि एक जीव सिद्ध नहीं बनता है, तो वह बाहर नहीं निकलता है | बाहर निकलने वाले जीव
चित्रमय तत्वज्ञान
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