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क्षय से १४वां गुणस्थानक प्राप्त होता है । सम्पूर्ण ४ अधातिकर्म का नाश होने से मोक्ष प्राप्त होता है । (१) मिथ्यात्व गुणस्थानक :- अनादिकाल से मिथ्यादृष्टि होने के
कारण अज्ञान से यह आत्मा संसार में भटकती रहती है । अव्यवहारराशि वं व्यवहारराशि में मार्गानुसारी तक आत्मा यद्यपि मिथ्यात्व में रहती है। परंतु मिथ्यात्व गुणस्थानक के २ भेद होते हैं । जब तक चरमावर्त में आत्मा नहीं आती है, तब तक वह अतात्विक मिथ्यात्व गुणस्थानक में रहती है और चरमावर्त में प्रवेश होने पर मार्गानुसारी तक तात्त्विक मिथ्यात्व गुणस्थानक में रहती है । ___ मिथ्यात्व के कारण आत्मा अनादि काल से सुख पर राग और दुःख पर द्वेष करती है । अचरमावर्त में रही हुआ आत्मा चारित्र धर्म का पालन भी संसार के दुःखों की निवृत्ति व सुख की प्राप्ति के लिये ही करती है, मोक्ष के लिये नहीं करती । यह अतात्विक मिथ्यात्व में रही हुई आत्मा कहलाती है । चरमावर्त में आने पर भी मिथ्यात्व का तीव्र उदय होने पर मोक्ष के लिये धर्म नहीं करती । दीक्षा भी सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिये ले लेती है, मोक्ष के लिये नहीं लेती । इस प्रकार थोडे सुख के बाद अमाप दुःख प्राप्त करती हैं । फिर भी यह तात्विक मिथ्यात्व गुणस्थानक में रही हुई आत्मा कहलाती है। सास्वादन गुणस्थानक :- पहले गुणस्थानक पर आत्मा की पाप वृत्ति कम होने पर सत्संग , राग द्वेष की कटौति , वीतराग देव गुरु धर्म के ऊपर अहोभाव वगैरह से पुरुषार्थ करके अथवा नदी गोल पाषाण के न्याय से मिथ्यात्व को कमजोर बना कर यथाप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण यानी भाव विशेष से औपशमिक सम्यकत्व पाकर चौथे गुणस्थान आदि पर चली जाती है । वहां पर कुछ समय के बाद अनंतानुबंधी कषाय का उदय होने से चौथे गुणस्थानक से गिरकर अर्थात् सम्यकत्व गुण को वमन करके दूसरे गुणस्थानक पर आत्मा आ जाती है । कभी भी आत्मा पहले गुणस्थान से दूसरे
गुणस्थानक पर नहीं आती । एवं नहीं दूसरे से तीसरे गुणस्थानक चित्रमय तत्वज्ञान
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