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इसलिये १०x२=२० । उनमें गर्भज यानि माता पिता के संयोग से गर्भ द्वारा उत्पन्न होते हैं । समूर्छिम यानी माता पिता के संयोग के बिना ही स्वाभाविक उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० भेद । निम्नलिखित होते हैं । (१) पर्याप्त गर्भज जलचर (२) अपर्याप्त गर्भज जलचर (३) पर्याप्त
समूर्छिम जलचर (४) अपर्याप्त समूर्छिम जलचर (५) पर्याप्त गर्भज उरःपरिसर्प (६) अपर्याप्त गर्भज उर : परिसर्प (७) पर्याप्त समूर्छिम उरःपरिसर्प (८) अपर्याप्त समूर्छिम उर :परिसर्प (९) पर्याप्त गर्भज भुजपरिसर्प (१०) अपर्याप्त गर्भज भुजपरिसर्प (११) पर्याप्त समूर्छिम भुजपरिसर्प (१२) अपर्याप्त समूच्छिम भुजपरिसर्प (१३) पर्याप्त गर्भज चतुष्पद (१४) अपर्याप्त गर्भज चतुष्पद (१५) पर्याप्त समूर्छिम चतुष्पद (१६) अपर्याप्त समूर्छिम चतुष्पद (१७) पर्याप्त गर्भज खेचर (१८) अपर्याप्त गर्भज खेचर (१९) पर्याप्त समूर्छिम खेचर (२०) अपर्याप्त समूर्छिम खेचर । खेचर (नभचर) दो प्रकार के होते हैं रोंगटे से बने हुए पंख वाले खेचर, जैसे कबूतर, चिड़ियां, कौए, पोपट, मोर आदि । (२) चमड़े की पंख वाले खेचर, जैसे कि
चमगादड़ । अथवा अन्य रीति से २ प्रकार इस प्रकार होते हैं । (१) वितत पंख वाले खेचर - जब उड़ते हैं या बैठते हैं, तब पंख फैले
हुए होते हैं । (२) जुड़े हुए पंख वाले खेचर, उड़ते हो या बैठे हो, तब पंख फैले हुए नहीं होते, जुड़े हुए होते हैं । ये दो भेद वाले खेचर मनुष्य लोक के बाहर होते हैं । खेचरों की इन दो उपभेदं की गिनती स्थलचर के भेदों की तरह तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० भेद में नहीं की गई हैं ।
चित्रमय तत्वज्ञान
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