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२ त्रस :- जो जीव ठंडी या धूप से व्याकुल होकर अपने आप एक जगह से दसरी जगह जा सकते हैं, वे त्रस कहलाते हैं । इनके मुख्य चार भेद होते हैं। (१) द्वीन्द्रिय :- जिन जीवों को स्पर्शनेन्द्रिय व रसनेन्द्रिय ये दो
इन्द्रियों होती है, वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं । जैसे शंख , कैचुआ , पेट के कृमि, लकड़ी के कीडे (घून), जलौ, पूतरक (पोरे), बासी भोजन व आचार में उत्पन्न होने वाले जीव वगैरह । त्रीन्द्रिय :- जिन जीवों को स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय व घ्राणेन्द्रिय ये तीन इन्द्रियां होती है, वे त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । जैसे कि चीटी, मकोड़े, खटमल, उधेही, जूं, लीक, गीगोड़े, धनोरा, कुंथु
वगैरह । (३) चतुरिन्द्रिय :- जिन जीवों को स्पर्शनेन्द्रिय , रसनेन्द्रिय व घ्राणेन्द्रिय
चक्षुरिन्द्रिय ये चार इन्द्रियां होती हैं, वे चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि मक्खी, भौंरें, बिच्छु, मच्छर, डांस, मकड़ी, कंसारी
(कणई) वगैरह । (१) द्वीन्द्रिय (२) त्रीन्द्रिय व (३) चतुरिन्द्रिय ये तीनों जीव पर्याप्त भी
होते हैं और अपर्याप्त भी होते हैं । इसलिये हरेक के दो दो भेद होते हैं । अत: २+२+२=६ भेद । ये सभी विकलेन्द्रिय भी कहलाते
एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक सभी जीव तिर्यंच गति में गिने जाते है और ये सभी समूच्छिम (माता पिता के संयोग बिना ही) उत्पन्न
होते हैं। (४) पंचेन्द्रिय :- जिन जीवों को स्पर्शनेन्द्रिय , रसनेन्द्रिय , घ्राणेन्द्रिय ,
चक्षुरिन्द्रिय व श्रवणेन्द्रिय ये पांचों इन्द्रियाँ होती हैं, वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं । जैसे कि हाथी, मनुष्य आदि । इसके चार भेद होते
हैं । (१) नारक (२) तिर्यंच (३) मनुष्य व (४) देव (१) नारक :- हमारी पृथ्वी के नीचे क्रमशः सात नरक है । |चित्रमय तत्वज्ञान
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