Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 42
________________ होते है, तभी हमें दिखाई देते हैं। जर्मन के विद्वान् एन्ड्रयूड ने कहा है कि २९ ग्राम पानी में इतने स्कन्ध (Molecules) है कि ३ अबज मनुष्य ४० लाख वर्ष तक प्रति मिनिट ३०० की रफ्तार से जब गिने, तब वे गिने जा सकते है, जैन दर्शन कहता है कि उस एक एक स्कन्ध (Mole cules) में असंख्य जीव होते हैं । कितनी सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है जैन दर्शन में । (३) तेजस्काय :- यानी अग्नि रूपी शरीर को धारण वाले, जैसे कि अग्नि, दीपक, ज्वाला, बिजली व उनके किरण, शोला इत्यादि । (४) वायुकाय :- यानी हवा रूपी शरीर को धारण करने वाले, जैसे कि हवा, वायु, आंधी इत्यादि । (५) वनस्पतिकाय :- यानी वनस्पति रूपी शरीर को धारण करने वाले, जैसे कि प्याज व पौधे इत्यादि । इसके मुख्य दो भेद होते हैं । (१) प्रत्येक वनस्पतिकाय :- जिस वनस्पति के एक शरीर में एक जीव होता है, उसे प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय कहते हैं । जैसे •कि गेहूँ, खरबूजे के बीज, पेड़, पौधे इत्यादि । (२) साधारण वनस्पतिकाय :-- जिन वनस्पति के एक शरीर में अनन्त जीव होते हैं, उसे साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं, जैसे कि प्याज, आलू, मूली, गाजर इत्यादि । स्थावर के कुल २२ भेद (१) पृथ्वी काय (२) अप्काय (३) तेजस्काय (४) वायुकाय व (५) साधारण वनस्पतिकाय । उनमें से हरेक के सूक्ष्म व बादर, पर्याप्त व अपर्याप्त दो दो भेद होते हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय :- जिन अनेक जीवों के शरीर इकट्ठे होने पर भी दिखाई न दें एवं न स्पर्श आदि से जाने जा सके, वे सूक्ष्म एकेन्द्रिय चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only २५ www.jainelibrary.org

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