Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 48
________________ है । एक - एक दाढा पर ७-७ अन्तर्वीप होने से ८x ७=५६ अन्त द्वीप हुए । हमने आपको मनुष्य का क्षेत्र बता दिया है । अब हम आपको मनुष्य के भेद बता रहे हैं । (१) १५ कर्म भूमि के मनुष्य (२) ३० अकर्म भूमि के मनुष्य (३) ५६ अन्तर्वीप के मनुष्य होने से कूल मनुष्य के कूल १०१ भेद होते हैं । उनमें से हरेक मनुष्य के गर्भज व समुर्छिम . दो - दो भेद होते हैं। (१) गर्भज मनुष्य :- जो माता पिता के संयोग से उत्पन्न होते हैं, जैसे हम । गर्भज मनुष्य के दो भेद होते हैं । (१) पर्याप्त (२) अपर्याप्त । इसलिए १०१५२ =२०२ भेद हुए । इस प्रकार १०१ पर्याप्त गर्भज मनुष्य हुए। समूर्छिम मनुष्य :- जो माता पिता के संयोग के बिना ही मल, मूत्र, वीर्य वगैरह में उत्पन्न होते है । वे अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं । किसी भी यंत्र से दिखाई नहीं देते । । अन्तर्मुहूर्त = ४८ मिनिट के अन्दर मर जाते हैं । वे सभी अपर्याप्त ही होते हैं । इसलिये समूर्छिम मनुष्य के १०१ भेद ही होते है। १०१ पर्याप्त गर्भज मनुष्य+१०१ अपर्याप्त गर्भज मनुष्य+ १०१ अपर्याप्त समूर्छिम मनुष्य = ३०३ मनुष्य के कुल भेद होते प्रश्न :-- समूर्छिम मनुष्य कहां उत्पन्न होते हैं । उत्तर :- गर्भज मनुष्यों के मल (टट्टी), मूत्र, कफ, झूठा भोजन, थुक आदि, श्लेष्म, वमन (कै), मृतकलेवर, खून, वीर्य , स्त्री का जनन प्रदेश, आंख का मैल, नाक का मैल , कान का मैल, पसीना, नगर के खाल (गटर) आदि में उत्पन्न होते हैं । इनके पांच इन्द्रियाँ होती हैं, • मगर मन नहीं होता, इसलिये असंज्ञी कहलाते हैं । इनका शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होने से सूक्ष्म होता है । इसलिए वे यंत्र से नहीं दिखते । इनका आयुष्य अन्तर्मुहूर्त होता है और अपने योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करने के पहले ही मर जाते है । इसलिए अपर्याप्त कहलाते हैं । प्रश्न :- समूर्छिम मनुष्य की हत्या से बचने के लिये क्या करना चाहिये ? चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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