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(१) रत्नप्रभा (२) शर्कराप्रभा (३) वालुकाप्रभा (४) पंक-प्रभा (५) धूमप्रभा (६) तमःप्रभा व (७) महातमःप्रभा । इनमें रहने वाले जीव क्रमशः ७ प्रकार के नारक कहलाते हैं । वे पर्याप्त व अपर्याप्त होते हैं । अतः ७:२= १४ भेद हुए । मांस खाने वाले, पंचेन्द्रियों की हत्या करने वाले, महापरिग्रह रखने वाले , महान् हिंसा करने वाले ऐसे रौद्र परिणाम से जीव नरक में उत्पन्न होता है । वहां भयंकर गर्मी, भयंकर सर्दी व रोग | आदि के भयंकर कष्ट नारक जीव को भुगतने पड़ते हैं। तिर्यंच पंचेन्द्रिय :- मगरमच्छ, सर्प, नेवले , हाथी , पक्षी आदि तिर्यंच पंचेन्द्रिय कहलाते हैं । इनके मुख्य ३ भेद नीचे मुताबिक होते हैं । जलचर :- जो पंचेन्द्रिय जीव पानी में रहते हैं, वे जलचर
कहलाते हैं, जैसे कि मगर, मछली, कछुआ आदि । (२) स्थलचर :- जो जीव जमीन पर चलते हैं, जैसे कि सर्प,
अजगर आदि । इसके तीन भेद होते हैं । (i) उरःपरिसर्प :- जो पेट से चलते हैं, जैसे कि सर्प, अजगर
आदि । (ii) भुज परिसर्प :- जो भुजाओं से चलते हैं, जैसे कि चूहे, नेवले,
बंदर, गिलहरी , चिपकली । (iii) चतुष्पद :- जिनके चार पैर होते हैं, जैसे कि हाथी, गाय, घोड़े
बैल आदि । खेचर :- जो आकाश में उड़ते हैं, जैसे कि चिड़िया , कौए, तोते, कबूतर, उल्लू, चमगादड़ इत्यादि । (१) जलचर (२) उरःपरिसर्प (३) भुजपरिसर्प (४) चतुष्पद (५)
खेचर । ये सभी गर्भज व समूर्छिम होते हैं । इसलिये ५४२-१० भेद एवं प्रत्येक के पर्याप्त व अपर्याप्त दो दो भेद होते हैं ।
| चित्रमय तत्वज्ञान
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Jailere
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