Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 38
________________ (३) (२) मृषावाद विरमण महाव्रत :- किसी भी प्रकार का झूठ न बोलना , झूठ बुलवाना नहीं व झूठ बोलने वाले को अच्छा नहीं मानना । (३) अदत्तादान विरमण महाव्रत :- छोटी बड़ी सभी प्रकार की चोरी का त्याग करना । (४) मैथुन विरमण महाव्रत :- स्त्री का सर्वथा त्याग करना । उससे संबद्ध वस्त्र को भी न छुना । इसी प्रकार साध्वीजी पुरुष के विषय में ध्यान रखती है। (५) परिग्रह विरमण महाव्रत :- अल्प मूल्य व बहु मूल्य वाली वस्तु आदि सभी प्रकार के परिग्रह का त्याग करना । | परमात्मा : परम यानी सर्वोत्कृष्ट, आत्मा यानी जीव, वे परमात्मा कहलाती है। परमात्मा के दो भेद होते हैं। अरिहंत परमात्मा :- विश्व में जितने देहधारी आत्माए हैं, उनमें अरिहंत परमात्मा ही सर्वोत्कृष्ट होती है, क्योंकि सामान्य केवलज्ञानियों से इनकी विशेषता होती है । सामान्य केवलज्ञानियों से इनकी विशेषता यह होती हैं कि इनके ८ महाप्रातिहार्य होते हैं, वाणी में ३५ गुण होते है । चलते हैं, तब पैर के नीचे नव कमल देव रखते हैं | देशना मालकोश आदि रागों में देते हैं इत्यादि अनेक विशेषतायें होती है । इनके चार घाति कर्म समाप्त हो जाते हैं व तीर्थंकर नाम कर्म का उदय शुरु हो जाता है । ये जीवन्मुक्त परमात्मा कहलाती हैं। (२) सिद्ध परमात्मा :- संसार में भटकने वाली आत्मा आठ कर्म का क्षय होने पर सिद्ध परमात्मा बन जाती है । एक शायर ने कहा है। चट्टानों की चोट से झरना नदी बन जाता है । दंडे के प्रहार से ढोल बजने लग जाता है, अरिहंत सिद्ध के ध्यान करने से , यही जीव परमात्मा बन जाता हैं । चित्रमय तत्वज्ञान २३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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