Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 32
________________ १२. शरीर के पर्यायवाचक शब्द देह, काया, कलेवर वगैरह अलग है। और आत्मा के पर्यायवाची शब्द जीव, चेतन वगैरह अलग है । जिनके पर्यायवाचक शब्द अलग होते हैं, वे अलग पदार्थ होते हैं । जैसे घोडा व गधा वगैरह । १३. किसी किसी मनुष्य को पूर्वभव का स्मरण होने से सिद्ध होता है कि पहले भी आत्मा वही थी और अब भी वही आत्मा है, क्योंकि अनुभव और स्मृति का एकाधिरण में कार्यकारण भाव है । जब कि शरीर को जला दिया गया है। वह शरीर तो है नहीं, फिर भी स्मरण होता है । इसलिये शरीर से आत्मा भिन्न है । १४. जीव का स्वभाव है कि वह अधिकाधिक प्रिय वस्तु को ग्रहण करने की कोशिश करता है और अप्रिय वस्तु को छोड़ने की कोशिश करता है । इस प्रकार की ममता आदि को करने वाली आत्मा शरीर से भिन्न हैं । जैसे कि मनुष्य पैसे के लिये भोजन छोड़ देता है, पुत्र के लिये पैसा छोड़ देता है, स्त्री के लिये पुत्र का त्याग कर देता है और शरीर के लिये स्त्री का त्याग कर देता है और ममता यानी मान के लिये शरीर का भी त्याग कर देता है । १५. मेरा शरीर अच्छा नहीं है । `मेरा शरीर' इस शब्द का वहीं पर प्रयोग होता है, जहां दोनों वस्तुएँ अलग होती हैं । जैसे मेरा कपड़ा । जिस प्रकार "मैं" और कपड़ा अलग होते हैं, वैसे मेरा और शरीर अलग है । इसलिये शरीर से आत्मा भिन्न है । चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only १९ www.jainelibrary.org.

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