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६ आत्मा के भेद कितने हैं।। इस विश्व में अनन्त आत्मायें है । उनका तीन विभागों में वर्गीकरण हो सकता है । (१) बहिरात्मा (२) अन्तरात्मा (३) परमात्मा बहिरात्मा :- शरीर को ही आत्मा का स्वरूप मानता है । अर्थात् शरीर ही आत्मा है । उससे अलग आत्मा नहीं है । इसलिये शरीर के सुख के लिये स्पर्शेन्द्रियादि विषयों में बेरोक टोक प्रवृत्त होता है । जैसे कि कोई आत्मा शारीरिक सुख के लिये इष्ट वस्तु पाने पर मोह ममता व राग में मशगुल बन जाती है, तो कोई आत्मा अनिष्ट वस्तु पाने पर द्वेष से भड़कने लग जाती है, तो कोई आत्मा भौतिकता को बढावा देने सिने गीतो को सुनने में मस्त बनने लग जाती है, तो कोई स्त्री आदि के रूप देखने में मस्त बन जाती है, तो कोई आत्मा भिन्न भिन्न वस्तुओं के स्वाद का आस्वादन करने में लुब्ध बन जाती है, तो कोई पुष्प की सुगंध में मस्त हो जाती है । तो कोई डनलोप की गद्दी व पंखे आदि की हवा में स्पर्शेन्द्रिय द्वारा लब्ध बन जाती हैं ये सभी बहिरात्मा होती हैं। इन्हें आत्मा के ज्ञान दर्शन सुख आदि
गुणों पर विश्वास नहीं होता। । (२) अन्तरात्मा: जिन आत्माओं को ज्ञान, दर्शन, सुख आदि पर
अचल श्रद्धा होती है व अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें प्राप्त करने के लिये प्रयत्न भी करती हैं । वे अन्तरात्मा कहलाती हैं। अन्तरात्मा के तीन भेद होते हैं । (१) अविरत सम्यग्दृष्टि (२) देश विरत (३) सर्वविरत अविरत सम्यग्दृष्टि : अविरतसम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा के तीन
__भेद होते हैं। (i) औपशमिक सम्यग्दृष्टि :- कचरे वाला पानी हो, तो उसमें
फिटकडी डालने से कचरा नीचे जम जाता है । ऊपर बिल्कुल शुद्ध होता है, वैसे ही जिस आत्मा के अन्दर मिथ्यात्व का उपशम होने से निर्मल आत्म-परिणाम होता है । वह औपशमिक सम्यग् दृष्टि अन्तरात्मा कहलाली है ।
|चित्रमय तत्वज्ञान
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