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लवण समुद्र में गिरती है । महाहिमवत् पर्वत पर रहे हए महापद्मद्रह से दक्षिण दिशा में रोहिता नदी बहती हुई शब्दापाती पर्वत से पूर्व दिशा में होकर लवण समुद्र में गिरती है । हिमवत् क्षेत्र में युगलिक मनुष्य होते हैं।
(३) महा हिमवत् पर्वत के बाद उत्तर में हरिवर्ष क्षेत्र है । उसके मध्य में गंधापाती गोलाकार पर्वत है । उसके उत्तर में निषध पर्वत है । महा हिमवत् पर्वत के ऊपर महापद्मद्रह से उत्तर दिशा में हरिकांता नदी निकल कर गंधापाती पर्वत से पश्चिम की ओर मुड कर लवण समुद्र में गिरती है और निषध पर्वत के ऊपर तिगिच्छी द्रह से दक्षिण दिशा में हरिसलिला नदी निकलकर गंधापाती पर्वत के पास पूर्व की ओर मूड कर लवण समुद्र में गिरती है । इस हरिवर्ष क्षेत्र में भी युगलिक मनुष्य होते हैं।
(४) निषधपर्वत के बाद उत्तर में महाविदेह क्षेत्र है । उसके आगे नीलवंत पर्वत है । निषध पर्वत के तिगिच्छि द्रह से उत्तर दिशा में सीतोदा नदी बहती हुई चित्रक व विचित्र नाम के पर्वत से होकर युगलिक क्षेत्र देवकुरु में होती हुई ५ (पांच) सरोवरों का भेदन करती आगे बढती है । उसके दोनों ओर गजदंत के आकार के विद्युत्प्रभ व सोमनस पर्वत है । वहां से होती हुई मेरु पर्वत की ओर बढती है और उसके पास से होकर पश्चिम दिशा में मुडकर महाविदेह क्षेत्र को दो विभागों में विभाजित करती हुई लवणसमुद्र में गिरती है । इसी प्रकार नीलवंत पर्वत से केशरी द्रह में से सीता नदी निकल कर जमक व शमक नाम के पर्वत से होकर युगलिक क्षेत्र उत्तर कुरु में होकर ५ सरोवरों का भेदन करती हुई आगे बढती है । उसके दोनों ओर माल्यवंत और गंधमाल्य पर्वत है । वहाँ से होती हुई वह मेरु पर्वत की ओर बढती है और उसके पास में होकर पूर्व दिशा में मूडकर महाविदेह क्षेत्र को दो विभागों में विभाजित करती हुई लवण समुद्र में गिरती है।
इस प्रकार पूर्व महाविदेह में सीता नदी के ओक ओर ८ विजय और दूसरी ओर ८ विजय है | दो दो विजय के बीच में ओक ओक नदी है । एवं पश्चिम महाविदेह में भी सीतोदा नदी के एक ओर ८ विजय और
| चित्रमय तत्वज्ञान
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