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(१) तिर्यग्लोक :- तिर्यग्लोक में १ राज लंबी चौडी रत्नप्रभा पृथ्वी है । उसके मध्य में थाली के आकार का जम्बुद्वीप १ लाख योजन लम्बा - चौडा है । उसके मध्य में मेरुपर्वत १ लाख योजन ऊंचा है। जम्बुद्वीप के बाद दुगुना यानी २ लाख योजन लम्बाई चौडाई वाला कंगन के आकार का लवण समुद्र है । उससे दुगुने दुगुने क्रमशः भिन्न भिन्न नाम वाले असंख्यात द्वीप व समुद्र है । अंतिम असंख्यातवां समुद्र स्वयंभूरमण असंख्यात योजन लंबा - चौडाकार कंगन के आकार का है। ___मेरुपर्वत :- यह १ लाख योजन ऊंचा है । उसमें से वह ९९,००० योजन बाहर है व समभूतला पृथ्वी के नीचे १००० योजन जमीन के अंदर है । उसमें से ९०० योजन के नीचे अधोलोक है यानी मेरुपर्वत के १०० योजन अधोलोक में हैं । समभूतला पृथ्वी से ऊपर ९०० योजन के बाद ऊर्ध्वलोक है । इसलिए ९९,००० - ९०० = ९८१०० योजन
ऊर्ध्वलोक में है। ९०० + ९०० = १८०० योजन तिर्यगलोक में है । - ऊर्ध्वलोक में ९८१०० + तिर्यग्लोक में १८०० + अधोलोक में १०० = १ लाख योजन मेरु पर्वत है।
(२) अधोलोक :- हम जिस पर रहते हैं । वह पहली रत्नप्रभा पृथ्वी है । वह थाली के जैसी गोलाकार है । उसकी मोटाई १८०००० योजन और चौडाई व लम्बाई सतह पर ओक राज है | समभूतला रत्नप्रभा पृथ्वी से नीचे ९०० योजन जाने पर अधोलोक शुरु होता है । वह ७वी पृथ्वी तक है ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे किचड है । उसके नीचे घन पानी है । तथास्वभाव से उसके नीचे घनवाय है | उसके नीचे तनुवायु है, उसके नीचे आकाश है । इसी प्रकार नीचे नीचे क्रमशः शर्कराप्रभा, वालुका प्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, महातमप्रभा नाम की पृथ्वियाँ ज्यादा ज्यादा चौड़ी है । एवं उनके नीचे भी कादव घनपानी घनवायु तनुवायु आकाश है । इन ७ पृथ्वियों में से एक एक पृथ्वी एक - एक राज के अन्तर से है । व क्रमशः उनकी चौडाई बढ़ती जाती है | उनमें क्रमशः सात नारक के जीव रहते हैं । उन पृथ्वियों के नाम के अनुसार उनमें प्रकाश होता है । जैसे कि रत्न जैसा, कंकड जैसा,
चित्रमय तत्वज्ञान
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