Book Title: Chitramay Tattvagyan
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 12
________________ २. विश्व क्या है ? जैन दृष्टि से जिसमें छ द्रव्य हो, उसे विश्व कहते हैं । उसका पर्यायवाची शब्द लोक है । जिसमें ६ द्रव्य दिखाई देते हैं, उसे लोक कहते हैं, जिसमें छ द्रव्य दिखाई नहीं देते, सिर्फ एक आकाशास्तिकाय द्रव्य ही दिखाई देता है, उसे अलोक कहते हैं । यह अनन्त है । प्रश्न :- द्रव्य किसे कहते हैं ? उत्तर :- जिसमें गुण और पर्याय होते हैं । उसे द्रव्य कहते हैं । जो द्रव्य के साथ ही रहते हैं, उसे गुण कहते हैं । जैसे सोने का पीलापन, आत्मद्रव्य का ज्ञान वगैरह । जो क्रम से होते हैं, वे पर्याय कहलाते हैं. जैसे सोने की अंगूठी, आत्मा का मनुष्यपना वगैरह पर्याय कहलाते हैं । गुण और पर्याय हमेशा द्रव्य में ही रहते है, वे कभी अलग नहीं रहते हैं, फिर भी द्रव्य से वे भिन्न कहलाते हैं । कपडा यह द्रव्य है, तो सफेद उसका गुण है । छोटा बडा आदि पर्याय है । प्रश्न :- छद्रव्य कौन कौनसे हैं ? उत्तर-छ द्रव्य निम्न लिखित 888888 है। (१) धर्मास्तिकाय :- जो द्रव्य जीव व पुद्गल (जड) द्रव्य को गमनागमन में सहायता करता है, उसे धर्मास्तिकाय द्रव्य कहते हैं । जैसे मछली खुद तैरने में समर्थ हैं, फिर भी पानी उसे सहायता करता है । वैसे ही जीव व जड में गति करने का स्वयं सिद्ध सामर्थ्य है ही, फिर भी धर्मास्तिकाय द्रव्य उसे सहायता करता है | जहां पानी नहीं होता है, वहां मछली की गति नहीं होती है, वैसे ही जहां धर्मास्तिकाय नहीं होता है, वहाँ अलोकाकाश में जीव और जड की गति नहीं होती है | इसीलिये लोक के बाहर अलोकाकाश में मुक्त आत्मा व पुद्गल नहीं जाते । क्योंकि धर्मास्तिकाय द्रव्य लोक में ही है, उसके बाहर नहीं है । अब वैज्ञानिक भी धर्मास्तिकाय के करीब समान ईथर द्रव्य को मानने लगे हैं। क्योंकि सूर्य, ग्रह, चन्द्र, तारों के बीच बहुत |चित्रमय तत्वज्ञान lair Education Theradoras Bersonaprivate Use Orly www.jainelibrary.org

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