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समय प्रतिक्षण आगे दौडता है । यही कारण है कि वह नित्य नूतन होता है । प्रतिपल उसमे नवीनता परिलक्षित होती है । समय रोज नया होता है और आदमी वही पुराना का पुराना वना रहना है । समय नित्य नया होता जाता है और आदमी पुराना । यही मृत्यु की ओर बढना है । स्पष्ट कहिए तो यही मृत्यु है ।
समय के साथ नित्य नूतन वने रहना जीवन है | समय और जीवन मे किंचित् भी फासला नहीं चाहिए । यही दौडते समय को पकडना है, जो प्रबुद्ध चेत्ता व्यक्तियो के ही वश की बात है । जो समय से पिछड़ जाता है उसका व्यक्तित्व मृत्यु की राह पर दौड चलता है | इसलिए समय तथा व्यक्ति मे नही चाहिए । व्यक्ति और समय के सहचारी चलता है कि वस्तुत जीवन क्या है ।
जरा भी फासला
होने पर ही पता
१४ | चिन्तन-कण
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