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0 विज्ञान की प्रगति ने आज मानव को अनेक सुख-साधन रूप सम्पत्तियां मुहैया की है। मनुष्य जितना ही वैज्ञानिक सुख साधनो मे डूवता गया उतना ही वह आत्म-सुख से वचित होता चला गया। उसके दुःख का मुख्य कारण है-आध्यात्मिक जीवन के साथ रहे हुए सम्बन्धो का टूट जाना । जव विज्ञान का धर्म से सम्बन्ध टूट जाता है, तो फिर विज्ञान विनाश की ही सृष्टि करता है। इसलिए विज्ञान पर धर्म का नियत्रण आवश्यक है। धर्म के लिए विज्ञान का प्रकाश जरूरी है।
जव विज्ञान भ्रष्ट हो जाता है तो वह युद्धो को जन्म देता है, और जब धर्म भ्रष्ट हो जाता है तो वह वर्ग, सम्प्रदाय, पथ आदि अनेक विभाजक भेदो की उत्पत्ति कर डालता है। फिर विग्रह, कलह, विद्वप के अनेकानेक वितण्डावाद खड़े हो जाते हैं । मनुष्य धर्म के नाम पर ही परस्पर मे टकरा जाता है। यह टकराहट घृणा को जन्म देती है । पारस्परिक स्नेह, सौजन्य एव सहयोग एव सहकार की पयस्विनी सूख जाती है। फिर मानव वीरानियो मे भटक जाता है। ऐसी ही घातक स्थिति वर्तमान में उत्पन्न हो रही है। आज आवश्यकता है विज्ञान और धर्म इन दोनो के परस्पर मेल की, सहयोग एव सायुज्य की।
८४ | चिन्तन-कग