Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 108
________________ ] मनुष्य हर किसी से और हर क्षेत्र मे मैत्री स्थापित करना चाहता है । वह अपने चारो ओर मित्रो की भीड जमा करना चाहता है । आदर और सम्मान प्राप्ति की भावना उससे ऐसा करने को कहती है । इसके लिए मनुष्य को अपनी मनो भूमि तैयार करनी होगी। क्यों कि धैर्य, करुणा, नम्रता, ईमानदारी, उदारता, शालीनता, 'नि स्वार्थ भावना, द्वेष का दमन, पारस्परिक विश्वास एवं सहयोग की भावना आदि गुणो के द्वारा मैत्री की स्थापना की जा सकती है। इन में से किसी एक गुण की कमी भी मनुष्य को मैत्री-पथ से भटका सकती है । मन की भूमिका हमे इन्हीं सब अंधारो पर तैयार करनी होगी । तभी हम उसमे मैत्री का बीज बो । सकेंगे। विना किसी पूर्व तैयारी के बोये गए वीज के उग भी आने की संभावना कम रहती है। यदि कभी वह उग भी आता है किसी पूर्व तैयारी के वगैर तो इस को मात्र सयोग ही माना जाएंगा।। संयोग और सयोजना में बहुत वडा अन्तर है। कोर्य साधना की निश्चित भूमि आकस्मिक सयोग नही, सुनिश्चित सयोजना है। 0 8 ] चिन्तन-कण

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