Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 119
________________ 0 प्रेम मानव-मन की एक सहज स्वय स्फूर्तवृत्ति है। जो किसी न किसी रूप में समस्त मानव-जगत मे व्याप्त है । देखने मे आ रहा है कि आज प्रेम के नाम पर कलुषता पनपती जा रही है। प्रेम के नाम पर आज अनेक विभाजक रेखाएं उभर रही हैं, जो मानव-हृदय की पावनता को चाट जाना चाहती हैं, उसको टुकडो-टुकडो मे विभाजित कर विखेर देना चाहती हैं । हमे इन सबसे अपने आप को बचाकर रखना है। गगां के समान पवित्र, अन्तरिक्ष के समान अनन्त और हिमालय के समान उच्च प्रेम से युक्त मानव ही सच्चा मानव है। चिन्तन-कण | १०६

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