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शिक्षा केवल पाठशाला, स्कल या कॉलेजो मे सीखने की कला नही है। वह जीवन के साथ वैसे ही सम्बद्ध है, जैसे शरीर के साथ प्राण । शिक्षा का उद्देश्य मात्र अक्षर-बोध ही नहीं, चरित्र निर्माण भी है। स्वास्थ्य, विचार और चरित्र मे अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। इन सवकी पूर्ति शिक्षा से ही होती है । अतएव शारीरिक, मानसिक एव नैतिक विकास का नाम ही शिक्षा हैं । इन्ही तीनो के विकास से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। व्यक्तित्व निर्माण ही शिक्षा का सार माना जाता है। .
११२ । चिन्तन-कण
नकण