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0 अज्ञात हमेशा बुलाता रहता है । उसके प्रति जिज्ञासा का होना मानव की सहज वृत्ति है। बड़े से बड़े खतरे उठाकर भी वह उस पर से पर्दा उठाने का प्रत्यन करता है। असफलताएँ और कायरता पूर्ण तर्क इन्सान को कल्पना करने से कभी नही रोक सके । उसकी जानने, जांचने की और खोज करने की प्रवृत्ति को कुण्ठित नहीं कर सके। मनुष्य की प्रगति के इतिहास, मे बार-बार ऐमें अवसर- आए हैं। अज्ञात को जानने की जिज्ञासा जब-अधिक बलवती हो उठती है मानव-मन मे-तो अनेक उपलब्धियां नवीन रूप मे उसके सम्मुख प्रगट हो उठती हैं । जीवन के लिए प्रगति के नए आयाम स्थापित होने लगते है। - - - - - ,
धार्मिक विचारक इस बातामे पून जागरण की प्रक्रिया देखेंगे। वे कहेंगे कि मनुष्य अपने को ईश्वर का प्रतिरूप और उसी की तरह बनाने की कोशिश कर रहा है ।, यह काल और दूरी के बन्धनो को तोड डालना चाहता हैं । क्या उसका यह प्रयत्न इस वात से प्रेरित नही कि सच्चा आध्यात्मिक मनुष्य अपने परम पिता अनीम और अन्नत आत्मा की भाति किसी सीमा मे बधा नही रह सकता?
१०६ / चिन्तन-कण