Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 112
________________ O किसी भी पथ, सम्प्रदाय या दल से बँधते ही मनुष्य के मन की गति अवरुद्ध होने लगती है। उसके विचार उसकी ही सीमामो मे अवरुद्ध होने के कारण कुण्ठाएं उमे चारो ओर से घेर लेती हैं। उस के अन्तर मे शनैः शनै जडता का आविर्भाव होने लगता है । उसका मुक्त-चिन्तन-चित्र किसी एक चौखटे मे ही सिमिट कर रह जाता है। उसकी जीवन-सरिता का स्वच्छ प्रवाह दूपित होने लगता है। यहाँ तक कि उसके अन्दर से नव-जीवन के निर्माण की शक्ति ही समाप्त प्राय हो जाती है। क्योकि मानव-मन दलवन्दी के पिंजड़े में ऐसा फंस जाता है कि उसके मुक्त होने की सभी सम्भावनाएं नष्ट हो जाती हैं । सीमाओ से मुक्ति अमरत्व की परिचायक है, तो किसी एक सीमा मे बद्ध हो जाना मृत्यु की। मनुष्य का लक्ष्य मृत्यु नही अमरत्व है । १०२ चिन्तन-कण

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