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0 वही व्यक्ति भविष्य की चिन्तामो से अधिक आक्रान्त होता है, जो वर्तमान से निराश हो उठता है। निराश वही व्यक्ति होता है जो स्वय के पुरुषार्थ को भुला कर दूसरो से कुछ आशा-अपेक्षा रखता है.। बैसाखियो के सहारे लम्बी मजिलें कभी तय नही हुआ करती। जब तक स्वय का -पौरुष-पुरुषार्थ जागृत नहीं होगा, तब, तक, निराशा एव चिन्ताओ के चक्र से व्यक्ति छुटकारा पा ही नहीं सकता । वह जीवन-विकास के मार्ग को पार कर, अन्तिम लक्ष्य-विन्दु का, स्पर्श कर ही नहीं सकता। अन्तर-मे पुरुषार्थ ने ज्यो, ही अगड़ाई ली कि निराशा भगी। निराशा-भगी कि , चिन्ता-चक्र टूटा । चिन्ता-चक्र टूटा कि उत्साह एव.- आत्म विश्वास की उपलब्धि हो जाती है। जो व्यक्ति, परिवार, समाज,, राष्ट्र तथा- विश्व भर के लिए - प्रगति एव नि,श्रेयस् के द्वार उद्घाटित कर देती है । इसलिए जो भी महत्वपूर्ण कार्य करना हो, उसके लिए यह मत सोचो कि इसमे दूसरे क्या सहयोग कर सकते है अपितु यही सोचो कि मैं स्वय क्या कर सकता हूं और मुझे क्या करना चाहिए ?
चिन्तन-कण | EE