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0 वर्तमान में मनुष्य की कुछ आदत सी बन गई है कि वह बातें अधिक करता है और काम कम । उसकी जबान लम्बी हो गई है और हाथ छोटे । यह स्थिति बडी ही खतरनाक है। इसमे लक्ष्य से दूर रह जाना पड़ता है। मजिलें छूट जाती हैं। आदमी वाचालता के भंवर जाल में फस जाता है । कुण्ठाएं घेर लेती हैं। विकास अवरुद्ध हो जाता है। परिणाम आता है निराशा । इस नैराश्य की स्थिति से हमे बचना है । यह तभी सम्भव है जब कि हम काम अधिक और बातें कम करेंगे। विशाल कर्म क्षेत्र हमे पुकार रहा है । नवनिर्माण हमारा आह्वान कर रहा है। हमे आगे आएं और अपनी सृजनात्मक शक्ति का करिश्मा दिखलाएं। युग-बोध को समझें और अपने कर्तृत्व को सही दिशा दें। समस्यामओ की डोर स्वय सुलझती चली जाएगी। यही युग की माग है, जो सर्वथा सामयिक है।
चिन्तन-कम | १३