Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 100
________________ 0 जिन धाराओ से समाज का अहित होता है, उन धाराओ को मोड देना भी सीखिये। मांख मीचकर केवल लकीर के फकीर बनकर चलते रहने मे कोई बहादुरी नही है। धाराओ के साथ वह जाना कोई मूल्य-महत्व नही रखता । एक निश्चित परिधि मे कोल्हू के वैल की तरह तो कोई भी चल सकता है। इससे मजिल मिलने वाली नही। कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर परिधि को तोडकर वाहर निकलना भी जरूरी हो जाता है । यह चेतन वृत्ति का परिचायक ही माना जाएगा। हो सकता है समाज का कुछ वर्ग इस को सहन न भी कर सके । फिर भी कल्याण एव मगल की भावना को दृष्टि में रखते हुए परिधि से वाहर भी जाना चाहिए। ध्यान रहे, ऐसा भी न होने पाए कि हम परिधि तोडने की भावना के जोश मे आकर अपने होश यानि विवेक को ही भुला बैठे। कदम उठाने से पूर्व हम उसे विवेक की तुला पर अवश्य ही तोल लें। फिर उठाया गया प्रत्येक कदम हमे सफलता की ओर ही ले जाने वाला होगा और होगा अहितकारी धाराओ को मोड देने मे सशक्त एव समर्थ भी। १०] चिन्तन-फण

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